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________________ सृष्टिखण्ड ] wwwwwwww........................ पितरों तथा श्राद्धके विभिन्न अङ्गोका वर्णन ● ३१ I डाले। इसके बाद दोनों हाथोंसे अन्न निकालकर परोसे। परोसते समय 'उशन्तस्त्वा निधीमहि -' इत्यादि मन्त्रका उच्चारण करता रहे। उत्तम, गुणकारी शाक आदि तथा नाना प्रकारके भक्ष्य पदार्थोंके साथ दही, दूध, गौका घृत और शक्कर आदिसे युक्त अन्न पितरोंके लिये तृप्तिकारक होता है। मधु मिलाकर तैयार किया हुआ कोई भी पदार्थ तथा गायका दूध और घी मिलायी हुई खीर आदि पितरोंके लिये दी जाय तो वह अक्षय होती है - ऐसा आदि देवता पितरोंने स्वयं अपने ही मुखसे कहा है। इस प्रकार अन्न परोसकर पितृसम्बन्धी ऋचाओंका पाठ सुनावे। इसके सिवा सभी तरहके पुराण ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और रुद्र-सम्बन्धी भाँति भाँतिके स्तोत्र इन्द्र, रुद्र और सोमदेवताके सूक्त; पावमानी ऋचाएँ; बृहद्रथन्तर; ज्येष्ठसामका गौरवगान शान्तिकाध्याय, मधुब्राह्मण, मण्डलब्राह्मण तथा और भी जो कुछ ब्राह्मणोंको तथा अपनेको प्रिय लगे वह सब सुनाना चाहिये। महाभारतका भी पाठ करना चाहिये; क्योंकि वह पितरोंको अत्यन्त प्रिय है। ब्राह्मणोंके भोजन कर लेनेपर जो अन्न और जल आदि शेष रहे, उसे उनके आगे जमीनपर बिखेर दे। यह उन जीवोंका भाग है, जो संस्कार आदिसे हीन होनेके कारण अधम गतिको प्राप्त हुए हैं। अग्नि और सोम देवताके लिये अग्निमें दो बार आहुति करके एक-एक बार सबको जल दे। फिर फूल और अक्षत देकर तिलसहित अक्षय्योदक दान करे। फिर नाम और गोत्रका उच्चारण करते हुए शक्तिके अनुसार दक्षिणा दे गौ, भूमि, सोना, वस्त्र और अच्छे-अच्छे बिछौने दे। कृपणता छोड़कर पितरोंकी प्रसन्नताका सम्पादन करते हुए जो-जो वस्तु ब्राह्मणोंको, अपनेको तथा पिताको भी प्रिय हो, वही वही वस्तु दान करे। तत्पश्चात् स्वधावाचन करके विश्वेदेवोंको जल अर्पण करे और ब्राह्मणोंसे आशीर्वाद ले । विद्वान् पुरुष पूर्वाभिमुख होकर कहे- 'अघोराः पितरः सन्तु (मेरे पितर शान्त एवं मङ्गलमय हों)।' यजमानके ऐसा कहनेपर ब्राह्मणलोग 'तथा सन्तु (तुम्हारे पितर ऐसे ही हों) – ऐसा कहकर अनुमोदन करें। फिर श्राद्धकर्ता कहे — 'गोत्रं नो वर्धताम्' (हमारा गोत्र बढ़े) । यह सुनकर ब्राह्मणोंको 'तथास्तु' (ऐसा ही हो) इस प्रकार उत्तर देना चाहिये। फिर यजमान कहे — 'दातारो मेऽभिवर्धन्ताम्' 'वेदाः सन्ततिरेव च - एताः सत्या आशिषः सन्तु (मेरे दाता बढ़ें, साथ ही मेरे कुलमें वेदोंके अध्ययन और सुयोग्य सन्तानकी वृद्धि हो – ये सारे आशीर्वाद सत्य हो) ' । यह सुनकर ब्राह्मण कहें— 'सन्तु सत्या आशिषः (ये आशीर्वाद सत्य हो'। इसके बाद भक्तिपूर्वक पिण्डोंको उठाकर सूंघे और स्वस्तिवाचन करे। फिर भाई-बन्धु और स्त्री-पुत्र के साथ प्रदक्षिणा करके आठ पग चले। तदनन्तर लौटकर प्रणाम करे। इस प्रकार श्राद्धकी विधि पूरी करके मन्त्रवेत्ता पुरुष अग्रि प्रज्वलित करनेके पश्चात् बलिवैश्वदेव तथा नैत्यिक बलि अर्पण करे। तदनन्तर भृत्य, पुत्र, बान्धव तथा अतिथियोंके साथ बैठकर वही अन्न भोजन करे, जो पितरोंको अर्पण किया गया हो। जिसका यज्ञोपवीत नहीं हुआ है, ऐसा पुरुष भी इस श्राद्धको प्रत्येक पर्वपर कर सकता है। इसे साधारण [ या नैमित्तिक] श्राद्ध कहते हैं। यह सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करनेवाला है। राजन् ! स्त्रीरहित या विदेशस्थित मनुष्य भी भक्तिपूर्ण हृदयसे इस श्राद्धका अनुष्ठान करनेका अधिकारी है। यही नहीं, शूद्र भी इसी विधिसे श्राद्ध कर सकता है; अन्तर इतना ही है कि वह ब्राह्मणोंको तृप्त जानकर उन्हें हाथ-मुँह धोनेके लिये जल प्रदान करे। इसके बाद गायके गोबर और गोमूत्रसे लिपी हुई भूमिपर दक्षिणाय कुरा बिछाकर उनके ऊपर यत्नपूर्वक पितृयज्ञकी भाँति विधिवत् पिण्डदान करे। पिण्डदानके पहले पितरोंके नाम गोत्रका उच्चारण करके उन्हें अवनेजनके लिये जल देना चाहिये। फिर पिण्ड देनेके बाद पिण्डोपर प्रत्यवनेजनका जल गिराकर उनपर पुष्प आदि चढ़ाना चाहिये। सव्यापसव्यका विचार करके प्रत्येक कार्यका सम्पादन करना उचित है। पिताके श्राद्धकी भाँति माताका श्राद्ध भी हाथमें कुश लेकर विधिवत् सम्पन्न करे। दीप जलावे; पुष्प आदिसे पूजा करे । ब्राह्मणोंके आचमन कर लेनेपर स्वयं भी आचमन
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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