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________________ सृष्टिखण्ड] • भगवान् सूर्यकी उपासना और उसका फल-भद्रेश्वरकी कथा . देनेवाले और सम्पूर्ण विनोंके विनाशक हैं। ये सब सुशील और शास्त्रोंके तात्पर्य तथा विधानके पारगामी रोगोंका नाश कर डालते हैं। विद्वान् थे। सदा सद्भावपूर्वक प्रजाजनोंका पालन करते अब महात्मा भास्करके मूलमन्त्रका वर्णन करूँगा, थे। एक समयकी बात है, उनके बायें हाथमें श्वेत कुष्ठ हो जो सम्पूर्ण कामनाओं एवं प्रयोजनोंको सिद्ध करनेवाला गया। वैद्योंने बहुत कुछ उपचार किया; किन्तु उससे तथा भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है। वह मन्त्र इस कोढ़का चिह्न और भी स्पष्ट दिखायी देने लगा। तब प्रकार है-'ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः।' इस मन्त्रसे राजाने प्रधान-प्रधान ब्राह्मणों और मन्त्रियोंको बुलाकर सदा सब प्रकारकी सिद्धि प्राप्त होती है-यह निश्चित बात कहा-'विप्रगण ! मेरे हाथमें एक-ऐसा पापका चिह्न है। इसके जपसे रोग नहीं सताते तथा किसी प्रकारके प्रकट हो गया है, जो लोकमें निन्दित होनेके कारण मेरे अनिष्टका भय नहीं होता। यह मन्त्र न किसीको देना लिये दुःसह हो रहा है। अतः मैं किसी महान् पुण्यक्षेत्रमें चाहिये और न किसीसे इसकी चर्चा करनी चाहिये; जाकर अपने शरीरका परित्याग करना चाहता हूँ।' अपितु प्रयत्नपूर्वक इसका निरन्तर जप करते रहना ब्राह्मण बोले-महाराज ! आप धर्मशील और चाहिये। जो लोग अभक्त, सन्तानहीन, पाखण्डी और बुद्धिमान् हैं। यदि आप अपने राज्यका परित्याग कर देंगे लौकिक व्यवहारोंमें आसक्त हों, उनसे तो इस मन्त्रकी तो यह सारी प्रजा नष्ट हो जायगी। इसलिये आपको ऐसी कदापि चर्चा नहीं करनी चाहिये । सन्ध्या और होमकर्ममें बात नहीं कहनी चाहिये। प्रभो ! हमलोग इस रोगको मूलमन्त्रका जप करना चाहिये। उसके जपसे रोग और दबानेका उपाय जानते हैं; वह यह है कि आप यत्नपूर्वक क्रूर ग्रहोंका प्रभाव नष्ट हो जाता है। वत्स ! दूसरे-दूसरे महान् देवता भगवान् सूर्यकी आराधना कीजिये। अनेकों शास्त्रों और बहुतेरे विस्तृत मन्त्रोंकी क्या राजाने पूछा-विप्रवरो! किस उपायसे मैं आवश्यकता है; इस मूलमन्त्रका जप ही सब प्रकारकी भगवान् भास्करको सन्तुष्ट कर सकूँगा? शान्ति तथा सम्पूर्ण मनोरथोंकी सिद्धि करनेवाला है। ब्राह्मण बोले-राजन् ! आप अपने राज्यमें ही देवता और ब्राह्मणोंकी निन्दा करनेवाले नास्तिक पुरुषको रहकर सूर्यदेवकी उपासना कीजिये; ऐसा करनेसे आप इसका उपदेश नहीं देना चाहिये । जो प्रतिदिन एक, दो या भयङ्कर पापसे मुक्त हो स्वर्ग और मोक्ष दोनों प्राप्त तीन समय भगवान् सूर्यके समीप इसका पाठ करता है, कर सकेंगे। उसे अभीष्ट फलकी प्राप्ति होती है। पुत्रकी कामनावालेको यह सुनकर सम्राट्ने उन श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको प्रणाम पुत्र, कन्या चाहनेवालेको कन्या, विद्याकी अभिलाषा किया और सूर्यकी उत्तम आराधना आरम्भ की। वे रखनेवालेको विद्या और धनार्थीको धन मिलता है। जो प्रतिदिन मन्त्रपाठ, नैवेद्य, नाना प्रकारके फल, अर्घ्य, शुद्ध आचार-विचारसे युक्त हो संयम तथा भक्तिपूर्वक अक्षत, जपापुष्प, मदारके पत्ते, लाल चन्दन, कुंकुम, इस प्रसङ्गका श्रवण करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो सिन्दूर, कदली-पत्र तथा उसके मनोहर फल आदिके द्वारा सूर्यलोकको जाता है। सूर्य देवताके व्रतके दिन तथा भगवान् सूर्यकी पूजा करते थे। राजा गूलरके पात्रमें अर्घ्य अन्यान्य व्रत, अनुष्ठान, यज्ञ, पुण्यस्थान और तीर्थोंमें जो सजाकर सदा सूर्य देवताको निवेदन किया करते थे। इसका पाठ करता है, उसे कोटिगुना फल मिलता है। अर्घ्य देते समय वे मन्त्री और पुरोहितोंके साथ सदा व्यासजी कहते हैं-मध्यदेशमें भद्रेश्वर नामसे सूर्यके सामने खड़े रहते थे। उनके साथ आचार्य, रानियाँ, प्रसिद्ध एक चक्रवर्ती राजा थे। वे बहुत-सी तपस्याओं अन्तःपुरमें रहनेवाले रक्षक तथा उनकी पलियाँ, दासवर्ग तथा नाना प्रकारके व्रतोंसे पवित्र हो गये थे। प्रतिदिन तथा अन्य लोग भी रहा करते थे। वे सब लोग प्रतिदिन देवता, ब्राह्मण, अतिथि और गुरुजनोंका पूजन करते थे। साथ-ही-साथ अर्घ्य देते थे। सूर्यदेवताके अङ्गभूत उनका बर्ताव न्यायके अनुकूल होता था। वे स्वभावके जितने व्रत थे, उनका भी उन्होंने एकाग्रचित्त होकर
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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