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________________ सृष्टिखण्ड] . गणेशजीकी महिमा और उनकी स्तुति एवं पूजाका फल . २०७ मिलती, जो श्रीगङ्गाजीके सेवनसे प्राप्त होती है।* जाओ। विशेषतः इस कलिकालमें सत्त्वगुणसे रहित गङ्गाजीके सेवनसे बढ़कर धर्म-साधनका दूसरा कोई मनुष्योंको कष्टसे छुड़ाने और मोक्ष प्रदान करनेवाली उपाय नहीं है। इसलिये नारद ! तुम भी गङ्गाजीका गङ्गाजी ही हैं। गङ्गाजीके सेवनसे अनन्त पुण्यका उदय आश्रय लो। हड्डियोंमें गङ्गाजीके जलका स्पर्श होनेसे होता है। राजा सगरके पुत्र अपने पितरों तथा वंशजोंके साथ पुलस्त्यजी कहते हैं-भीष्म ! तदनन्तर वे स्वर्गलोकमें पहुंच गये। ब्राह्मण व्यासजीकी कल्याणमयी वाणी सुनकर बड़े व्यासजी कहते हैं-मुनिश्रेष्ठ नारद ब्रह्माजीके प्रसन्न हुए और गङ्गाजीके तटपर तपस्या करके मुखसे यह बात सुनकर गङ्गाद्वार (हरिद्वार) में गये और मोक्षमार्गको पा गये। जो मनुष्य इस उत्तम परम पवित्र वहाँ तपस्या करके ब्रह्माजीके समान हो गये। गङ्गाजी उपाख्यानका श्रवण करता है, वह समस्त दुःख-राशिसे सर्वत्र सुलभ होते हुए भी गङ्गाद्वार, प्रयाग और गङ्गा- पार हो जाता है तथा उसे गङ्गाजीमें स्रान करनेका फल सागर-संगम-इन तीन स्थानोंमें दुर्लभ हैं-वहाँ मिलता है। एक बार भी इस प्रसङ्गका पाठ करनेपर इनकी प्राप्ति बड़े भाग्यसे होती है। वहाँ तीन रात्रि या एक सम्पूर्ण यज्ञोंका फल मिल जाता है। जो गङ्गाजीके रात निवास करनेसे भी मनुष्य परम गतिको प्राप्त होता है; तटपर ही दान, जप, ध्यान, स्तोत्र, मन्त्र और देवार्चन इसलिये धर्मज्ञ ब्राह्मणो! सब प्रकारसे प्रयत्न करके आदि कर्म कराता है, उसे अनन्त फलकी प्राप्ति तुमलोग परम कल्याणमयी भगवती भागीरथीके तीरपर होती है। गणेशजीकी महिमा और उनकी स्तुति एवं पूजाका फल पुलस्त्यजी कहते हैं-भीष्प ! इसके बाद एक एक दिव्य मोदक (लठ्ठ) पार्वतीके हाथमें दिया। मोदक दिन व्यासजीके शिष्य महामुनि संजयने अपने गुरुदेवको देखकर दोनों बालक मातासे माँगने लगे। तब प्रणाम करके प्रश्न किया। ___ पार्वतीदेवी विस्मित होकर पुत्रोंसे बोलीं-'मैं पहले संजयने पूछा-गुरुदेव ! आप मुझे देवताओंके इसके गुणोंका वर्णन करती हूँ, तुम दोनों सावधान होकर पूजनका सुनिश्चित क्रम बतलाइये। प्रतिदिनकी पूजामें सुनो। इस मोदकके सूंघनेमात्रसे अमरत्व प्राप्त होता है; सबसे पहले किसका पूजन करना चाहिये? जो इसे सूंघता या खाता है, वह सम्पूर्ण शास्त्रोंका मर्मज्ञ, व्यासजी बोले-संजय ! विनोंको दूर करनेके सब तन्त्रोंमें प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान्, लिये सर्वप्रथम गणेशजीकी पूजा करनी चाहिये। ज्ञान-विज्ञानके तत्त्वको जाननेवाला और सर्वज्ञ होता पार्वतीदेवीने पूर्वकालमें भगवान् शङ्करजीके संयोगसे है-इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। पुत्रो ! तुममेंसे जो स्कन्द (कार्तिकेय) और गणेश नामके दो पुत्रोंको जन्म धर्माचरणके द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आयेगा, उसीको मैं दिया। उन दोनोंको देखकर देवताओंको पार्वतीजीपर यह मोदक दूँगी। तुम्हारे पिताकी भी यही सम्मति है।' बड़ी श्रद्धा हुई और उन्होंने अमृतसे तैयार किया हुआ माताके मुखसे ऐसी बात सुनकर परम चतुर स्कन्द * पाठयज्ञपरैः सर्वमन्त्रहोमसुराचनैः । सा गतिर्न भवेजन्तोर्गङ्गासंसेवया च या॥ (६०।११६) + विशेषात्कलिकाले च गङ्गा मोक्षप्रदा नृणाम् । कृच्छत्रस क्षीणसत्त्वानामनन्तः पुण्यसम्भवः । (६० । १२३)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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