SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • अर्चवस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .. [संक्षिप्त पयपुराण उन्होंने अपनी नम्रता और प्रणाम आदिके द्वारा महर्षियोंको उत्पत्ति कैसे हुई, उससे ब्रह्माजीका आविर्भाव किस सन्तुष्ट किया। वे यज्ञमें भाग लेनेवाले महर्षि भी प्रकार हुआ तथा कमलसे प्रकट हुए ब्रह्माजीने किस सदस्योंसहित बहुत प्रसन्न हुए तथा सबने एकत्रित होकर तरह जगत्की सृष्टि की-ये सब बातें इन्हें बताइये। सूतजीका यथायोग्य आदर-सत्कार किया। उनके इस प्रकार पूछनेपर लोमहर्षण-कुमार ऋषि बोले-देवताओंके समान तेजस्वी सूतजी ! सूतजीने सुन्दर वाणीमें सूक्ष्म अर्थसे भरा हुआ न्याययुक्त आप कैसे और किस देशसे यहाँ आये हैं? अपने वचन कहा-'महर्षियो! आपलोगोंने जो मुझे पुराण आनेका कारण बतलाइये। सुनानेकी आज्ञा दी है, इससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। सूतजीने कहा-महर्षियो ! मेरे बुद्धिमान् पिता यह मुझपर आपका महान् अनुग्रह है। सम्पूर्ण धर्मोके व्यास-शिष्य लोमहर्षणजीने मुझे यह आज्ञा दी है कि पालनमें लगे रहनेवाले पुराणवेत्ता विद्वानोंने जिनकी 'तुम मुनियोंके पास जाकर उनकी सेवामें रहो और वे जो भलीभाँति व्याख्या की है, उन पुराणोक्त विषयोंको मैंने कुछ पूछे, उसे बताओ।' आपलोग मेरे पूज्य है। जैसा सुना है, उसी रूपमें वह सब आपको सुनाऊँगा। बताइये, मैं कौन-सी कथा कहूँ ? पुराण, इतिहास सत्पुरुषोंकी दृष्टि में सूत जातिका सनातन धर्म यही है कि अथवा भिन्न-भिन्न प्रकारके धर्म-जो आज्ञा दीजिये, वह देवताओं, ऋषियों तथा अमिततेजस्वी राजाओंकी वही सुनाऊँ। वंश-परम्पराको धारण करे-उसे याद रखे तथा सूतजीका यह मधुर वचन सुनकर वे श्रेष्ठ महर्षि इतिहास और पुराणोंमें जिन ब्रह्मवादी महात्माओंका बहुत प्रसन्न हुए। अत्यन्त विश्वसनीय, विद्वान् लोमहर्षण- वर्णन किया गया है, उनकी स्तुति करे; क्योंकि जब पुत्र उग्रश्रवाको उपस्थित देख उनके हृदयमें पुराण वेनकुमार राजा पृथुका यज्ञ हो रहा था, उस समय सूत सुननेकी इच्छा जाग्रत् हुई। उस यज्ञमें यजमान थे महर्षि और मागधने पहले-पहल उन महाराजकी स्तुति ही की शौनक, जो सम्पूर्ण शास्त्रोंके विशेषज्ञ, मेधावी तथा थी। उस स्तुतिसे सन्तुष्ट होकर महात्मा पृथुने उन [वेदके] विज्ञानमय आरण्यक-भागके आचार्य थे। वे दोनोंको वरदान दिया। वरदानमें उन्होंने सूतको सूत सब महर्षियोंके साथ श्रद्धाका आश्रय लेकर धर्म सुननेकी नामक देश और मागधको मगधका राज्य प्रदान किया इच्छासे बोले। ___ था। क्षत्रियके वीर्य और ब्राह्मणीके गर्भसे जिसका जन्म शौनकने कहा-महाबुद्धिमान् सूतजी ! आपने होता है, वह सूत कहलाता है। ब्राह्मणोंने मुझे पुराण इतिहास और पुराणोंका ज्ञान प्राप्त करनेके लिये सुनानेका अधिकार दिया है। आपने धर्मका विचार ब्रह्मज्ञानियोंमें श्रेष्ठ भगवान् व्यासजीकी भलीभाँति करके ही मुझसे पुराणकी बातें पूछी हैं; इसलिये इस आराधना की है। उनकी पुराण-विषयक श्रेष्ठ बुद्धिसे भूमण्डलमें जो सबसे उत्तम एवं ऋषियोंद्वारा सम्मानित आपने अच्छी तरह लाभ उठाया है। महामते ! यहाँ जो पद्मपुराण है, उसकी कथा आरम्भ करता हूँ। श्रीकृष्णये श्रेष्ठ ब्राह्मण विराजमान हैं, इनका मन पुराणोंमें लग द्वैपायन व्यासजी साक्षात् भगवान् नारायणके स्वरूप हैं। रहा है। ये पुराण सुनना चाहते हैं। अतः आप इन्हें पुराण वे ब्रह्मवादी, सर्वज्ञ, सम्पूर्ण लोकोंमें पूजित तथा अत्यन्त सुनानेकी ही कृपा करें। ये सभी श्रोता, जो यहाँ एकत्रित तेजस्वी हैं। उन्हींसे प्रकट हुए पुराणोंका मैंने अपने हुए हैं, बहुत ही श्रेष्ठ हैं। भिन्न-भिन्न गोत्रोंमें इनका जन्म पिताजीके पास रहकर अध्ययन किया है। पुराण सब हुआ है। ये वेदवादी ब्राह्मण अपने-अपने वंशका शास्त्रोंके पहलेसे विद्यमान हैं। ब्रह्माजीने [कल्पके पौराणिक वर्णन सुनें। इस दीर्घकालीन यज्ञके पूर्ण आदिमें] सबसे पहले पुराणोंका ही स्मरण किया था। होनेतक आप मुनियोंको पुराण सुनाइये। महाप्राज्ञ ! पुराण त्रिवर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ और कामके साधक एवं आप इन सब लोगोंसे पद्मपुराणकी कथा कहिये। पयकी परम पवित्र हैं। उनकी रचना सौ करोड़ श्लोकोंमें हुई
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy