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________________ १८२ ******* अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • ********...................................................**** करके पुत्र अस्थि सञ्चयके लिये कुछ दिन प्रतीक्षामें व्यतीत करे। फिर यथासमय अस्थि-सञ्चय करके दशाह (दसवाँ दिन ) आनेपर स्नान कर गीले वस्त्रका परित्याग कर दे। फिर विद्वान् पुरुष ग्यारहवें दिन एकादशाह श्राद्ध करे और प्रेतके शरीरकी पुष्टिके लिये एक ब्राह्मणको भोजन कराये। उस समय वस्त्र, पीढ़ा और चरणपादुका आदि वस्तुओंका विधिपूर्वक दान करे। दशाहके चौथे दिन किया जानेवाला श्राद्ध (चतुर्थीह), तीन पक्षके बाद किया जानेवाला (त्रैपाक्षिक अथवा सार्धमासिक), छः मासके भीतर होनेवाला ( ऊनषाण्मासिक) तथा वर्षके भीतर किया जानेवाला (ऊनाब्दिक) श्राद्ध और इनके अतिरिक्त बारह महीनोंके बारह श्राद्ध-कुल सोलह श्राद्ध माने गये हैं। जिसके लिये ये सोलह श्राद्ध यथाशक्ति श्रद्धापूर्वक नहीं किये जाते, उसका पिशाचत्व स्थिर हो जाता है। अन्यान्य सैकड़ों श्राद्ध करनेपर भी प्रेतयोनिसे उसका उद्धार नहीं होता। एक वर्ष व्यतीत होनेपर विद्वान् पुरुष पार्वण श्राद्धकी विधिसे सपिण्डीकरण नामक श्राद्ध करे। ब्राह्मणने पूछा - केशव ! तपस्वी, वनवासी और गृहस्थ ब्राह्मण यदि धनसे हीन हो तो उसका पितृ कार्य कैसे हो सकता है ? श्रीभगवान् बोले – जो तृण और काष्ठका उपार्जन करके अथवा कौड़ी कौड़ी माँगकर पितृ कार्य करता है, उसके कर्मका लाखगुना अधिक फल होता है। कुछ भी न हो तो पिताकी तिथि आनेपर जो मनुष्य तदनन्तर, ब्राह्मणके उपदेशसे वह वनमें गया और घासका बोझा लेकर बड़े हर्षके साथ पिताकी तृप्तिके लिये उसे गौको खिला दिया। इस पुण्यके प्रभावसे वह देवलोकको चला गया। पितृयज्ञसे बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है; इसलिये पूर्ण प्रयत्न करके अपनी शक्तिके अनुसार मात्सर्यभावका त्याग करके श्राद्ध करना चाहिये। जो मनुष्य लोगोंके सामने इस धर्मसन्तान (धर्मका विस्तार करनेवाले) अध्यायका पाठ करता है, उसे प्रत्येक लोकमें गङ्गाजीके जलमें स्नान करनेका फल प्राप्त होता है। जिसने प्रत्येक जन्ममें महापातकोंका संग्रह किया हो, उसका वह सारा संग्रह इस अध्यायका एक बार पाठ या श्रवण करनेपर नष्ट हो जाता है । ★ पतिव्रता ब्राह्मणीका उपाख्यान, कुलटा स्त्रियोंके सम्बन्धमें उमा - नारद-संवाद, पतिव्रताकी महिमा और कन्यादानका फल ― नरोत्तमने पूछा- नाथ पतिव्रता स्त्री मेरे बीते हुए वृत्तान्तको कैसे जानती है? उसका प्रभाव कैसा है? यह सब बतानेकी कृपा करें। श्रीभगवान् बोले- वत्स! मैं यह बात तुम्हें पहले बता चुका हूँ। किन्तु फिर यदि सुननेका कौतूहल हो रहा है तो सुनो; तुम्हारे मनमें जो कुछ प्रश्न है, सबका केवल गौओंको घास खिला देता है, उसे पिण्डदानसे भी अधिक फल प्राप्त होता है। पूर्वकालकी बात है, विराटदेशमें एक अत्यन्त दीन मनुष्य रहता था। एक दिन पिताकी तिथि आनेपर वह बहुत रोया रोनेका कारण यह था कि उसके पास [ श्राद्धोपयोगी ] सभी वस्तुओंका अभाव था। बहुत देरतक रोनेके पश्चात् उसने किसी विद्वान् ब्राह्मणसे पूछा- 'ब्रह्मन् ! आज मेरे पिताजीकी तिथि है, किन्तु मेरे पास धनके नामपर कौड़ी भी नहीं है; ऐसी दशामें क्या करनेसे मेरा हित होगा ? आप मुझे ऐसा उपदेश दीजिये, जिससे मैं धर्ममें स्थित रह सकूँ।' विद्वान् ब्राह्मणने कहा- -तात! इस समय 'कुतप' नामक मुहूर्त बीत रहा है, तुम शीघ्र ही वनमें जाओ और पितरोंके उद्देश्यसे घास लाकर गौको खिला दो। [ संक्षिप्त पद्मपुराण - - उत्तर दे रहा हूँ। जो स्त्री पतिव्रता होती है, पतिको प्राणोंके समान समझती है और सदा पतिके हित साधनमें संलग्न रहती है, वह देवताओं और ब्रह्मवादी मुनियोंकी भी पूज्य होती है। जो नारी एक ही पुरुषकी सेवा स्वीकार करती है—दूसरेकी ओर दृष्टि भी नहीं डालती, वह संसारमे परम पूजनीय मानी जाती है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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