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________________ सृष्टिखण्ड ] PAKPUR-ANNA • उत्तम ब्राह्मण और गायत्री मन्त्रकी महिमा • ********** अक्षरोंके ये चौबीस देवता माने गये हैं। * गायत्री मन्त्रके इन देवताओंका ज्ञान प्राप्त कर लेनेपर सम्पूर्ण वाङ्मय (वाणीके विषय) का बोध हो जाता है। जो इन्हें जानता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर ब्रह्मपदको प्राप्त होता है। विज्ञ पुरुषको चाहिये कि अपने शरीरके पैरसे लेकर सिरतक चौबीस स्थानोंमें पहले गायत्रीके अक्षरोंका न्यास करे । 'तत्'का पैरके अंगूठेमें, 'स' का गुल्फ (घुट्ठी) में, 'वि'का दोनों पिंडलियोंमें, 'तु'का घुटनोंमें, 'र्व'का जाँघोंमें, रे'का गुदामें 'ण्य'का अण्डकोषमें, 'म्'का कटिभागमें, 'भ'का नाभिमण्डलमें, 'ग' का उदरमें, 'दे'का दोनों स्तनोंमें, 'व'का हृदयमें 'स्य'का दोनों हाथोंमें, 'धी' का मुँहमें, 'म'का तालुमें, 'हि' का नासिकाके अग्रभागमें, 'धि'का दोनों नेत्रोंमें 'यो'का दोनों भौहोंमें, 'यो'का ललाटमें 'नः 'का मुखके पूर्वभागमें, 'प्र'का दक्षिण भागमें, 'चो'का पश्चिम भागमें और 'द'का मुखके उत्तर भागमें न्यास करे। फिर 'यात्' का मस्तकमें न्यास करके सर्वव्यापी स्वरूपसे स्थित हो जाय। धर्मात्मा पुरुष इन अक्षरोंका न्यास करके ब्रह्मा, विष्णु और शिवका स्वरूप हो जाता है। वह महायोगी और महाज्ञानी होकर परम शान्तिको प्राप्त होता है। नारद ! अब सन्ध्या-कालके लिये एक और न्यास बतलाता हूँ, उसका भी यथार्थ वर्णन सुनो। 'ॐ भूः ' इसका हृदयमें न्यास करके, ॐ भुवः का सिरमें १५३ न्यास करे। फिर ॐ स्वः 'का शिखामें", 'ॐ तत्सवितुर्वरेण्यम्' का समस्त शरीरमें 'ॐ भर्गो देवस्य धीमहि' इसका नेत्रोंमें' तथा 'ॐ धियो यो नः प्रचोदयात्' का 'दोनों 'हाथोंमें न्यास करे। तत्पश्चात् 'ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ' का उच्चारण करके जल-स्पर्श मात्र करनेसे द्विज पापसे शुद्ध होकर श्रीहरिको प्राप्त होता है। इस प्रकार व्याहृति और बारह ॐकारोंसे युक्त गायत्रीका सन्ध्याके समय कुम्भक क्रियाके साथ तीन बार जप करके सूर्योपस्थानकालमें जो चौबीस अक्षरोंकी गायत्रीका जप करता है, वह महाविद्याका अधीश्वर होता है और ब्रह्मपदको प्राप्त करता है। व्याहृतियोंसहित इस गायत्रीका पुनः न्यास करना चाहिये। ऐसा करनेसे द्विज सब पापोंसे मुक्त होकर श्रीविष्णुके सायुज्यको प्राप्त होता है। न्यास - विधि यह है— 'ॐ भूः पादाभ्याम्' का उच्चारण करके दोनों चरणोंका स्पर्श करे। इसी प्रकार 'ॐ भुवः जानुभ्याम् कहकर दोनों घुटनोंका, ॐ स्वः कट्याम्' बोलकर कटिभागका 'ॐ महः नाभी' का उच्चारण करके नाभिस्थानका, ॐ जनः हृदये' कहकर हृदयका, ॐ तपः करयो' बोलकर दोनों हाथोंका, ॐ सत्यं ललाटे' का उच्चारण करके ललाटका तथा गायत्रीमन्त्रका पाठ करके शिखाका स्पर्श करना चाहिये। सब बीजोंसे युक्त इस गायत्रीको जो जानता है, वह मानो चारों वेदोंका, योगका तथा तीनों प्रकारके • आप्रेयं प्रथमं ज्ञेयं वायव्यं तु द्वितीयकम्। तृतीयं सूर्यदैवत्यं चतुर्थ वैयतं तथा ॥ पञ्चमं यमदैवत्यं वारुणं षष्ठमुच्यते। सप्तमं बार्हस्पत्ये तु पार्जन्यं चाष्टमं विदुः ॥ ऐन्द्रं च नवमं ज्ञेयं गान्धवं दशमं तथा पौष्णमेकादशं विद्धि मैत्रं द्वादशकं स्मृतम् ॥ त्वाष्ट्रं त्रयोदशं ज्ञेयं वासवं तु चतुर्दशम् । मारुतं पञ्चदशकं सौम्यं षोडशकं स्मृतम् ॥ आङ्गिरसं सप्तदशं वैश्वदेवमतः परम् । आश्विनं चैकोनविंशं प्राजापत्यं तु विंशकम् ॥ सर्वदेवमयं ज्ञेयमेकविंशकमक्षरम् । रौद्रं द्वाविंशकं ज्ञेयं ब्राह्मं ज्ञेयमतः परम् ॥ वैष्णवं तु चतुर्विंशमेता अक्षरदेवताः । (४३ | १६९ – १७५) १. ॐ भूरिति हृदये । २. ॐ भुवः शिरसि। ३. ॐ स्वः शिखायै ४. ॐ तत्सवितुर्वरेण्यमिति कलेवरे । ५. ॐ भर्गो देवस्य धीमहीति नेत्रयोः । ६. ॐ धियो यो नः प्रचोदयादिति करयोः इन छः वाक्योंको क्रमशः पढ़कर सिर आदि छः अङ्गका स्पर्श करना चाहिये।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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