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________________ सृष्टिखण्ड] • गणेश और कार्तिकेयका जन्म तथा कार्तिकेयद्वारा तारकासुरका वध . . . बाद उन्होंने भी दैत्यको लक्ष्य करके भयानक आवाज दैत्य निष्पाण होकर प्रलयकालीन पर्वतके समान करनेवाली गदा चलायी; उसकी चोट खाकर वह धरतीपर गिर पड़ा। दानवोंके धुरन्धर वीर दैत्यराज पर्वताकार दैत्य तिलमिला उठा। अब उसे विश्वास हो तारकके मारे जानेपर सबका दुःख दूर हो गया। देवतागया कि यह बालक दुःसह एवं दुर्जय वीर है। उसने लोग कार्तिकेयजीकी स्तुति करते हुए क्रीडामें मग्न हो बुद्धिसे सोचा, अब निःसन्देह मेरा काल आ पहुंचा है। गये, उनके मुखपर मुसकान छा गयी । वे अपनी मानसिक उसे कम्पित होते देख कालनेमि आदि सभी दैत्यपति संग्राममें कठोरता धारण करनेवाले कुमारको मारने लगे। परन्तु महातेजस्वी कार्तिकेयको उनके प्रहार और विभीषिकाएँ छू भी नहीं सकीं। उन्होंने दानव-सेनाको अस्त्र-शस्त्रोंसे विदीर्ण करना आरम्भ किया। उनके अखोंका कोई निवारण नहीं हो पाता था। उनकी मार खाकर कालनेमि आदि देवशत्रु युद्धसे विमुख होकर भाग चले। इस प्रकार जब दैत्यगण आहत होकर चारों ओर भाग गये और कित्ररगण विजय-गीत गाने लगे, उस समय अपना उपहास जानकर तारकासुर क्रोधसे अचेत-सा हो गया। उसने तपाये हुए सोनेकी कान्तिसे सुशोभित गदा लेकर कुमारपर प्रहार किया और विचित्र बाणोंसे मारकर उनके वाहन मयूरको युद्धसे भगा दिया। अपने वाहनको रक्त बहाते हुए भागते देख कार्तिकेयने सुवर्णभूषित निर्मल शक्ति हाथमें ली और दानवराज तारकसे कहा-'खोटी बुद्धिवाले दैत्य ! खड़ा रह, चिन्ताका परित्याग करके हर्षपूर्वक अपने-अपने लोकमें खड़ा रह; जीते-जी इस संसारको भर आँख देख ले। गये। सबने कार्तिकेयजीको वरदान दिये। अब मैं अपनी शक्तिके द्वारा तेरे प्राण ले रहा हैं. तू अपने देवता बोले-जो परम बुद्धिमान् मनुष्य कुकर्मोको याद कर।' यों कहकर कुमारने दैत्यके ऊपर कार्तिकेयजीसे सम्बन्ध रखनेवाली इस कथाको पढ़ेगा, शक्तिका प्रहार किया। कुमारकी भुजासे छूटी हुई वह सुनेगा अथवा सुनायेगा, वह यशस्वी होगा। उसकी शक्ति केयूरकी खन खनाहटके साथ चली और दैत्यकी आयु बढ़ेगी; वह सौभाग्यशाली, श्रीसम्पत्र, कान्तिमान, छातीमें, जो वज्र तथा गिरिराजके समान कठोर थी, जा सुन्दर, समस्त प्राणियोंसे निर्भय तथा सब दुःखोंसे लगी। उसने तारकासुरके हृदयको चीर डाला और वह मुक्त होगा।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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