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________________ १३४ • अर्चयख हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्यपुराण तदनन्तर ब्रह्माजी अपनी बाँहें ऊपर उठाये घोर तपस्याम अभिमत, वत्सर, भूति, सर्वासुरनिषूदन, सुपर्वा, संलग्न हुए । भगवान् भास्करकी भाँति अन्धकारका नाश बृहत्कान्त और महालोकनमस्कृत । देवी (वसु) ने वसुकर रहे थे और सत्यधर्मके परायण होकर अपनी संज्ञक देवताओंको उत्पन्न किया, जो इन्द्रका अनुसरण किरणोंसे सूर्यके समान चमक रहे थे। किन्तु अकेले करनेवाले थे। धर्मकी चौथी पत्नी विश्वा (विश्वेशा) के होनेके कारण उनका मन नहीं लगा; अतः उन्होंने अपने गर्भसे विश्वेदेव नामक देवता उत्पन्न हुए। इस प्रकार यह शरीरके आधे भागसे शुभलक्षणा भार्याको उत्पन्न किया। धर्मकी सन्तानोंका वर्णन हुआ। विश्वेदेवोंके नाम इस तत्पश्चात् पितामहने अपने ही समान पुत्रोंकी सृष्टि की, प्रकार है-महाबाहु दक्ष, नरेश्वर पुष्कर, चाक्षुष मनु, जो सब-के-सब प्रजापति और लोकविख्यात योगी हुए। महोरग, विश्वानुग, वसु, बाल, महायशस्वी निष्कल, ब्रह्माजीने [दस प्रजापतियोंके अतिरिक्त लक्ष्मी, अति सत्यपराक्रमी रुरुद तथा परम कान्तिमान् भास्कर । साध्या, शुभलक्षणा विश्वेशा, देवी तथा सरस्वती-इन इन विश्वेदेव-संज्ञक पुत्रोंको देवमाता विश्वेशाने जन्म दिया पाँच कन्याओंको भी उत्पन्न किया। ये देवताओंसे भी है। मरुत्त्वतीने महत्त्वान् नामके देवताओंको उत्पन्न किया, श्रेष्ठ और आदरणीय मानी जाती हैं। कोंके साक्षी जिनके नाम ये है-अग्नि, चक्षु ज्योति, सावित्र, मित्र, ब्रह्माजीने ये पाँचों कन्याएँ धर्मको अर्पण कर दी। अमर, शरवृष्टि, सुवर्ष, महाभुज, विराज, राज, विश्वायु, ब्रह्माजीके आधे शरीरसे जो पली प्रकट हुई थी, वह सुमति, अश्वगन्ध, चित्ररश्मि, निषध, आत्मविधि, चारित्र, इच्छानुसार रूप धारण कर लेती थी। वह सुरभिके पादमात्रग, बृहत्, बृहद्रूप तथा विष्णुसनाभिग। ये सब रूपमें ब्रह्माजीकी सेवामें उपस्थित हुई। लोकपूजित मरुत्त्वतीके पुत्र मरुद्गण कहलाते हैं। अदितिने कश्यपके ब्रह्माजीने उसके साथ समागम किया, जिससे ग्यारह पुत्र अंशसे बारह आदित्योंको जन्म दिया। उत्पन्न हुए। पितामहसे जन्म ग्रहण करनेवाले वे सभी इस प्रकार महर्षियोंद्वारा प्रशंसित सृष्टि-परम्पराका बालक रोदन करते हुए दौड़े। अतः रोने और दौड़नेके क्रमशः वर्णन किया गया। जो मनुष्य इस श्रेष्ठ पुराणको कारण उनकी 'रुद्र' संज्ञा हुई। इसी प्रकार सुरभिके सदा सुनेगा और पर्वोक अवसरपर इसका पाठ करेगा, गर्भसे गौ, यज्ञ तथा देवताओंकी भी उत्पत्ति हुई । बकरा, वह इस लोकमें वैराग्यवान् होकर परलोकमें उत्तम हंस और श्रेष्ठ ओषधियाँ (अन्न आदि) भी सुरभिसे ही फलोंका उपभोग करेगा। जो इस पौष्कर पर्वकाउत्पन्न हुई है। धर्मसे लक्ष्मीने सोमको और साध्याने महात्मा ब्रह्माजीके प्रादुर्भावकी कथाका पाठ करता है, साध्य नामक देवताओंको जन्म दिया। उनके नाम इस उसका कभी अमङ्गल नहीं होता। महाराज ! प्रकार हैं-भव, प्रभव, कृशाश्व, सुवह, अरुण, वरुण, श्रीव्यासदेवसे जैसे मैंने सुना है, उसी प्रकार तुम्हारे विश्वामित्र, चल, धुव, हविष्मान्, तनूज, विधान, सामने मैंने इस प्रसङ्गका वर्णन किया है। तारकासुरके जन्मकी कथा, तारककी तपस्या, उसके द्वारा देवताओंकी पराजय और ब्रह्माजीका देवताओंको सान्त्वना देना भीष्मजीने पूछा-ब्रह्मन् ! अत्यन्त बलवान् प्रकट होती है, उसी प्रकार दितिके गर्भसे दैत्योंकी उत्पत्ति तारक नामके दैत्यकी उत्पत्ति कैसे हुई ? कार्तिकेयजीने हुई है। पूर्वकालमें उसी शुभलक्षणा दितिको महर्षि उस महान् असुरका संहार किस प्रकार किया? भगवान् कश्यपने यह वरदान दिया था कि 'देवि ! तुम्हें वज्राङ्ग रुद्रको उमाकी प्राप्ति किस प्रकार हुई ? महामुने ! ये नामका एक पुत्र होगा, जिसके सभी अङ्ग वज्रके समान सारी बातें जिस प्रकार हुई हों, सब मुझे सुनाइये। सुदृढ़ होंगे।' वरदान पाकर देवी दितिने समयानुसार उस पुलस्त्यजीने कहा-राजन् ! जैसे अरणीसे अग्नि पुत्रको जन्म दिया, जो वजके द्वारा भी अच्छेद्य था।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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