SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सृष्टिखण्ड] • मार्कण्डेयजीके दीर्घायु ह्येनेकी कथा और श्रीरामका पुष्करमें पिताका श्राद्ध करना . १०५ सबका चिन्तन करते-करते उन्हें सन्ध्या हो गयी। तब मीठे बेल, शालूक, कसेरू, पीली काबरा, अच्छे-अच्छे श्रीरघुनाथजीने मुनियोंके साथ सायंकालका सन्ध्योपासन कैर, शक्कर-जैसे सिंघाड़े, पके कैथ तथा और भी जो किया। तत्पश्चात् रात्रिमें भाई और पत्नीके साथ वहीं सामयिक फल हों, उन्हें श्राद्धके लिये शीघ्र ही ले शयन किया। जब रात्रिका अन्तिम प्रहर व्यतीत होने आओ।' श्रीरामचन्द्रजीकी आज्ञा पाकर लक्ष्मणने सारा लगा, तब श्रीरघुनाथजीने स्वप्नमें देखा वे पिताजी तथा सामान एकत्रित कर दिया। जानकीजीने भोजन बनाया अन्य सम्बन्धियोंके साथ अयोध्यामें विराजमान हैं। और तैयार हो जानेपर श्रीरामचन्द्रजीको सूचित कर वैवाहिक मङ्गल-कार्य समाप्त करके वे बहुत-से बन्धु- दिया। श्रीराम भी अवियोगा नामकी बावलीमें स्नान बान्धवोंके साथ ऋषियोंसे घिरे बैठे हैं। साथमें पत्नी करके मुनियोंके आगमनकी प्रतीक्षा करने लगे। सीता भी मौजूद है।' लक्ष्मण और सीताने भी इसी दुपहरीके बाद जब सूर्य ढलने लगे और कुतप नामकी रूपमें श्रीरघुनाथजीको देखा। सबेरा होनेपर उन्होंने बेला उपस्थित हुई, उस समय श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा मुनियोंसे सारी बातें निवेदन की, जिन्हें सुनकर ऋषियोंने निमन्त्रित सम्पूर्ण ऋषि वहाँ आ पहुँचे । मुनियोंको आया कहा-'रघुनन्दन ! यह स्वप्न सत्य है; परन्तु मृत देख विदेहकुमारी सीता वहाँसे दूर हट गयीं और पुरुषका जब स्वप्रमें दर्शन हो तो उसके लिये श्राद्ध करना झाड़ियोंकी आड़में छिपकर बैठ गयीं। श्रीरामचन्द्रजीने आवश्यक माना गया है। सन्तानके अभ्युदयकी कामना स्मृतियोंमें बतायी हुई विधिके अनुसार ब्राह्मणोंको भोजन रखनेवाले तथा अन्न चाहनेवाले पितर ही भक्त सन्तानको कराया तथा मनुष्योंके श्राद्धके लिये जो वैदिक क्रिया स्वप्रमें दर्शन देते हैं। आपको पितासे तो वियोग था ही, बतलायी गयी है, वह सब सम्पन्न की। फिर वैश्वदेव माता और भरतके साथ भी चौदह वर्षोतक वियोग करके पुराणोक्त विधिका भी पालन किया। ब्राह्मणोंके रहेगा। वीर ! अब आप राजा दशरथका श्राद्ध कीजिये। ये सभी ऋषि-महर्षि आपके भक्त हैं और आपके शुभ कार्यमें सहयोग देनेके लिये प्रस्तुत हैं। मैं (मार्कण्डेय), जमदग्नि, भरद्वाज, लोमश, देवरात और शमीक-ये छः श्रेष्ठ द्विज श्राद्धमें उपस्थित रहेंगे। महाबाहो ! आप केवल सामान जुटाइये। श्राद्धमें प्रधान वस्तु तो है इङ्गदी (लिसोड़े) की खली, बेर और आँवले। इनके साथ पके हुए बेल तथा भाँति-भांतिके मूल होने चाहिये। इन सब वस्तुओंसे तथा श्राद्ध-सम्बन्धी दानके द्वारा आप ब्राह्मणोंको तृप्त कीजिये । सुव्रत ! पुष्करके वनमें आकर जो नियमपूर्वक रहता और नियमित आहार करके [श्राद्ध आदिके द्वारा] पितरोंको तृप्त करता है, उसे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है। श्रीराम! [आप श्राद्धकी सामग्री एकत्रित कराइये,] हमलोग सान ARE -- करनेके लिये ज्येष्ठ पुष्करमें जा रहे हैं।' भोजन कर चुकनेपर क्रमशः पिण्ड देनेके पश्चात् श्रीरघुनाथजीसे ऐसा कहकर वे सभी ऋषि चले ब्राह्मणोंको विदा किया। उनके चले जानेपर गये। तब श्रीरामचन्द्रजीने लक्ष्मणसे कहा- 'सुमित्रा- श्रीरामचन्द्रजीने अपनी प्रिया सीतासे कहा-'प्रिये ! नन्दन! अच्छे-अच्छे संतरे, कटहल, पारद, यहाँ आये हुए मुनियोंको देखकर तुम छिप क्यों गयीं ?
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy