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________________ भूमिका श्री रमण महर्षि के जीवन और शिक्षाओ के सम्बन म श्री आमबोन रचित प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका लिखते हुए मुझे बहुत प्रमनता अनुभव हो रही है। इसका हमारे युग मे, जिसमे उत्सुकना और पगनमुन्चना पर आधाग्नि सन्देहवादी वृत्ति का प्राधान्य है, विशेष सम्बन्ध है। प्रस्तुत पुस्तक मे आत्मा के घम का वणन है जो हमे मतम और मिथ्या विश्वामो, गामिक रीति-रिवाजा और बमकाण्ड मे मुक्ति प्रदान करता है और स्वतन्त्र जात्माओं के रूप में जीवन यापन करने के योग्य बनाता है। सभी धर्मो का माप आनगिक वैयक्तिक अनुभव और दिव्य भत्ता के माथ व्यक्तिगत सम्बन्ध है। यह पूजा कम और खोज अधिक है। यह तो अपने स्वरूप को पहचानने और मुक्ति का माग है। यूनानियों की विस्यात उक्ति 'अपने को पहचाना' उपनिपदो के 'आत्मानम् विद्धि' उपदेश में नम्बद्ध है । पृथक्करण की प्रक्रिया द्वारा हम शरीर, मन और बुद्धि की परतो को पार करके विश्व-आत्मा के दशन करते हैं। “यही वह वास्तविक प्रकाश है जो ससार मे आन वाले प्रत्यक मानव को आलोकित करता है।" "शिव प्राप्ति के लिए हमे उच्चतम स्थिति पर पहुँचना होगा, उस पर अपनी दृष्टि स्थिर रखनी होगी और यहाँ नीचे उतरते वक्त हमे उसी प्रकार अपने परिधानो को उतार फेंकना होगा जिस प्रकार यूनानियो के धार्मिक अनुष्ठानो मे जिन लोगों को देवालय के अन्ततम प्रदेश मे प्रवेण का अधिकार मिल जाता है, अपने को शुद्ध करने के बाद प्रत्येक वस्त्र उतार फेंकना पड़ता है और विलकुल नगे होकर चलना होता है ।" ' हम उस अन त मत्ता में निमग्न हो जाते हैं, जिसकी कोई सीमा या निर्धारण नही है । यह शुद्ध मत्ता है, जिसमें एक वस्तु का दूसरे से विरोध नहीं होता। व्यक्ति अपने को सभी वस्तुओं और घटनाओं के साथ एकाकार अनुभव करता है। आत्मा को वास्तविक ज्ञान हो जाता है, क्योकि इस पर वरीयताओं या विरक्तियो, इच्छाओं या अनिच्छाओ का अव वोर्ड प्रभाव नहीं पड़ता। ये अब विकारक माध्यम के रूप मे काय नहीं करती। वालक आत्म दशन के अधिक निकट होता है। सत्य के राज्य में प्रवेश ' प्लोटिनस एनोइस, I, V], ६
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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