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________________ ७२ रमण महर्षि उन हिन्दू पाठको को मैं यह बता देना चाहता हूं कि निरामिप भोजन हिन्दू लोग केवल इसलिए नहीं करते कि इससे जीव हत्या होती है और वह मांस नहीं खाना चाहते, हालांकि यह भी एक कारण है परन्तु मुख्य कारण यह है कि असात्विक भोजन (जिसमे कई प्रकार की सब्जियों और मांस भी सम्मिलित हैं) मे पाशवी आवेशो को बढ़ावा मिलता है और आध्यात्मिक प्रयास मे बाधा पडती है । ___अन्य भी अनेक उपायो से माता को ऐसा अनुभव कराया गया कि उनका पुत्र दैवीय अवतार है । एक बार जब वह उसके सामने बैठी, वह लुप्त हो गया और उसके स्थान पर उन्होने एक विशुद्ध प्रकाश का एक लिंग देखा । यह सोचकर कि उसने अपना मानवीय रूप छोड दिया है, वह फूट-फूटकर रोने लगी, परन्तु शीघ्र ही लिंग लुप्त हो गया और वह पहले के समान पुन प्रकट हो गया। एक अन्य अवसर पर उसने उन्हे शिव के परम्परागत प्रतिनिधि रूपो के सदृश मालाओ से लदा हुआ और सों से घिरा हुआ देखा। उसने चिल्लाते हुए उससे कहा, "उन्हे दूर भेज दो। मैं उनसे भयभीत हो गयी हूँ।" इसके उपरान्त उसने उससे मानवीय रूप मे ही प्रकट होने की प्राथना की। इन दृश्यो का प्रयोजन सिद्ध हो गया था, उसने यह अनुभव कर लिया था कि जिस रूप को वह पुत्र रूप मे जानती और स्नेह करती थी वह किसी अन्य रूप के समान, जो उसका पुत्र धारण करता, मिथ्या था। __ मन् १६२० मे माता का स्वास्थ्य गिरने लगा। वह आश्रमवासियो की पहले की तरह मेवा नहीं कर सकती और उसे विवश होकर अधिक श्रम करना पड़ा। उसकी बीमारी मे श्रीभगवान निरन्तर उसके समीप रहे और प्राय रात को उमके पास बैठा करते थे। मौन और चिन्तन मे उसकी प्रज्ञा ने परिपक्व रूप धारण किया।। १६ मई, सन् १९२२ को बहला नवमी के दिन माता ने महाप्रयाण किया। श्रीभगवान् और अन्य कुछ व्यक्ति साग दिन विना खाये माता के चरणो मे वैठे रहे । सूर्यास्त के समय भोजन तैयार किया गया और श्रीभगवान् ने दूमरो से जाने और भोजन करने के लिए कहा परतु उन्होंने स्वय नही खाया। मायकाल कुछ भक्तजन माता के समीप बैठे हुए वेदमन्यो का पाठ करने लगे और दूसरे गम नाम जपने लगे । दो घण्टे से अधिक समय तक वह वहाँ लेटी रही, उसकी छाती फूल रही थी और सांस जोर-जोर से चल रही थी। यह माग ममय श्रीभगवान् उसके पास बैठे रहे, उनका दायां हाथ उसके हृदय पर और वायां हाथ उसके मस्तक पर था। इस बार जीवन को लम्बा खीचने का प्रश्न नहीं था अपितु केवल मन को शान्त करने का प्रपन था ताकि मत्यु गहा ममाधि का रूप धारण कर सके।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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