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________________ रमण महर्षि श्रीभगवान् और उनके भक्तो ने महाकक्ष के उत्तर मे स्थित फूस की शाला मे (जिसे बाद मे नष्ट कर दिया गया) शरण ली। चोर चिल्ला-चिल्लाकर उनसे कहने लगे “यही वैठे रहो, अगर तुम लोग यहां मे हिले तो हम तुम्हारा सिर तोड देंगे।" ___श्रीभगवान ने चोरी से कहा, "सारा महाकक्ष आपके कब्जे मे है, आप जो चाहे करें।" ___ एक चोर उनके पास आया और उसने लैप मांगा । श्रीभगवान् के आदेश पर रामकृष्णस्वामी ने उसे एक जलता हुआ लम्प दे दिया। फिर एक चोर आया और उसने अलमारी की चावियाँ मांगी परन्तु चावियां कुजूस्वामी अपने साथ ले गये थे और चोर को यह बता दिया गया। चोरो ने अलमारियाँ तोडकर खोली। उनके हाथ कुछ चांदी के पत्तरे जो मूर्तियो की सजावट के लिए रखे थे, कुछ आम और थोडे-से चावल–कुल मिलाकर दस रुपये का सामान हाथ लगा । थगावेलु पिल्ले के छ रुपये भी चोर ले गये ।। चोर थोडा-सा सामान हाथ लगने से बहुत निराश हुए। एक चोर छडी घुमाता हुआ वापस आया और पूछने लगा, "आपका धन कहाँ है ? आप उसे कहाँ रखते हैं ?" श्रीभगवान् ने उस चोर से कहा, "हम गरीव साधु हैं, दान के सहारे गुजर-बसर करते हैं, हमारे पास धन कहाँ से आया ।" चोर को बडी झुंझलाहट हो रही थी और क्रोध आ रहा था, परन्तु यह कर ही क्या सकता था। श्रीभगवान् ने रामकृष्णस्वामी तथा अन्य भक्तो से अपने घावो की मरहमपट्टी कराने के लिए कहा। रामकृष्णस्वामी ने पूछा, "स्वामिन् आपका क्या होगा ?" श्रीभगवान् हेम पडे और उन्होने व्यग्य भाव से उत्तर दिया, "मेरी भी पूजा हुई है।" श्रीभगवान की जांघ के घाव को देखकर रामकृष्णस्वामी को एकाएक क्रोध आ गया। उसने पास पड़ी हुई लोहे की एक छड उठा ली और स्वामी से बाहर जाकर यह देखने की आज्ञा मांगी कि चोर क्या कर रहे हैं । परन्तु श्रीभगवान् ने उसे रोक दिया, "हम साधु हैं । हमे अपना धम नहीं छोड़ना चाहिए। अगर तुम वाहर गये और तुमने उन्हे मारा और किसी की मृत्यु हो गयी तो इसके लिए दुनिया हमे दोपी ठहराएगी न कि उन्हे । वह तो पथभ्रष्ट आदमी हैं और उनकी आंखो पर अज्ञान का परदा पडा है, परन्तु हमे तो ठीक रास्ते पर चलना चाहिए। अगर तुम्हारे दांत एकाएक तुम्हारी जवान को काट डालें तो क्या आप उन्हे उखाड़ फेंकेंगे ?" मवेरे के दो बजे चोर वहाँ मे चले गये । कुछ देर बाद कुजूस्वामी एक
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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