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________________ अ-प्रतिरोध नहीं दिया तो वह बहुत कुद्ध हुमा और कहने लगा, "तुम मेरी बात क्यो नही सुनते ? इस लड़की के प्रति कामासक्ति के कारण तुम मेरे प्रति समुचित सम्मान प्रशित नही कर रहे ।" इस पर उस युवक ने अपना जूता निकाला और उसकी खूब अच्छी तरह मरम्मत की । कुछ महीने बाद वालानन्द लौट आया और फिर उत्पात मचाने लगा। एक अवसर पर तो वह श्रीभगवान् की आंखों की ओर स्थिर दृष्टि करके बैठ गया और कहने लगा कि वह उसे निर्विकल्प समाधि (आध्यात्मिक परमानन्द) की दशा में ले जायगा। परन्तु हुआ यह कि उसे नीद आ गयी और श्रीभगवान् तथा उनके शिष्य उठ खडे हुए और वहां से प्रस्थान कर गये । इसके तत्काल बाद बालानन्द के प्रति लोगों की सामान्य धारणा इस प्रकार की हो गयी कि उसने वहाँ से चले जाने में ही अपना कल्पाण समझा। एक और 'साधु' भी था जिसने तरुणस्वामी के गुरू होने का ढोग रचकर प्रतिष्ठा अजित करने का प्रयत्न किया । कालाहस्ती से लौटने के बाद यह साधु कहने लगा, "मैं इतनी दूर से केवल यह देखने आया हूँ कि तुम्हारा हाल-चाल कैसा है । मैं तुम्हे दत्तात्रेय मत्र की दीक्षा दूंगा।" ___ श्रीभगवान् न तो हिले और न ही कुछ बोले। उस साधु ने अपना कथन जारी रखते हुए कहा, "मुझे स्वप्न में भगवान् प्रकट हुए हैं और उन्होंने तुम्हे उपदेश देने का मुझे आदेश दिया है।" ___श्रीभगवान् ने व्यग्य से पूछा, "तो मुझे भी स्वप्न में भगवान को प्रकट होन और तुम्हारा उपदेश ग्रहण करने का आदेश लेने दो, फिर मैं इसे ग्रहण कर लूंगा।" ___ "नही यह उपदेश बहुत छोटा है केवल कुछ अक्षरो का, तुम अभी से प्रारम्भ कर सकते हो।" "तुम्हारे उपदेश का क्या लाभ होगा जब तक मैं दीक्षा न ले लू । इसके लिए कोई उपयुक्त शिष्य हूढो । मैं इसके उपयुक्त नहीं हूं।" __कुछ समय बाद, जव साधु ध्यानमग्न था। श्रीभगवान उसे ध्यान मे दिखायी दिये और कहने लगे, "धोखे में मत आयो।" इससे साधु अत्यन्त भयभीत हो उठा और यह सोचने लगा कि श्रीभगवान् मे भी वही सिद्धियों होनी चाहिए जिनका वह उनके विरुद्ध प्रयोग कर रहा है। यह विचार आते ही साधु ने क्षमा याचना के लिए तुरन्त विरूपाक्ष की ओर प्रस्थान कर दिया। उसने थोमगवान् से प्राथना की कि वे उन्हें भूल से छुटकारा दिला दें। श्रीभगवान् ने उसे आश्वासन दिया कि उन्होने किसी सिद्धि का प्रयोग नहीं किया था । साधु ने देखा कि श्रीभगवान् में रत्ती भर भी कोध या विक्षोभ का भाव
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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