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________________ सातवाँ अध्याय अ-प्रतिरोध एक स्थापित धम मे अ-प्रतिरोध अव्यावहारिक प्रतीत हो सकता है क्योकि प्रत्येक देश को न्यायालय और पुलिस और कम से कम आधुनिक परिस्थितियो मे सेना अवश्य रखनी पडती है । धम के दायित्व के दो स्तर होते है एक तो निम्नतम दायित्व उन सव व्यक्तियो का जो इसका अनुसरण करते हैं और उन देशो का जहाँ यह म्यापित है और दूसरे पूर्ण दायित्व उन व्यक्तियो का जो स्वर्गिक सुख की खोज मे सभी सांसारिक वस्तुओ को तुच्छ समझते हुए धर्मात्माओ द्वारा निर्धारित मार्ग का अनुसरण करते हैं । केवल इसी दूसरे और उच्चतर अथ मे श्रीभगवान् ने एक मार्ग का निर्धारण किया था । इसीलिए वे स्वयं अपने को तथा अपने अनुयायियों को कह सकते थे, " बुराई का प्रतिरोध मत करो ।" वे समस्त समाज के लिए किसी सामाजिक नियम की घोषणा नही कर रहे थे बल्कि वे अपने अनुयायियो के लिए एक जीवन-पद्धति का संकेत कर रहे थे । यह केवल उन्ही लोगो के लिए सभव है जिन्होंने भगवदिच्छा के प्रति आत्म-समर्पण कर दिया है और जो कुछ उनके सामने आता है उसे वह उचित और आवश्यक रूप मे स्वीकार कर लेते है भले ही सासारिक दृष्टिकोण से वह दुर्भाग्य हो । श्रीभगवान् ने एक बार एक भक्त से कहा था, "आप भगवान् को अच्छी चीजो के लिए धन्यवाद देते हो परन्तु आप उसे उन चीजो के लिए धन्यवाद नही देते जो आपको बुरी प्रतीत होती हैं, यही आप गलती करते हैं । " यह आपत्ति की जा सकती है कि यह सरल विश्वास श्रीभगवान् द्वारा उपदिष्ट एकरूपता के सिद्धान्त से बहुत भिन्न है, परन्तु केवल मानसिक स्तर पर ही इस प्रकार के सिद्धान्तो मे सघर्ष होता है। उनका कहना था, "भगवान्, गुरु या आत्मा के प्रति समर्पण ही आवश्यक है ।" जैसा कि एक बाद के अध्याय में दिखाया जायगा, समर्पण की ये तीन पद्धतियाँ वस्तुत भिन्न नही हैं । यहाँ इतना कहना पर्याप्त है कि उस व्यक्ति के लिए जो यह मानता है कि केवल एक ही आत्मा है, सभी वाह्य गतिविधि एक स्वप्न या चलचित्र प्रदर्शन प्रतीत होता है जो आत्मा के उपस्तर पर हो रहा है और वह एक
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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