SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रमण महाप गुरुमत्तम् पर तीथ यात्रियों और दर्शको का तांता लग गया और अनेको व्यक्ति आकर स्वामी के सम्मुख साष्टांग प्रणाम करने लगे। कई उनके पास अपनी मनोकामनाओ की पूर्ति के लिए प्राथना करने आते और कई विशुद्ध श्रद्धा भाव से उनके पास आते । लोगो की भीड इतनी अधिक हो गयी कि उनकी पीठिका के चारो ओर वांसो का एक घेरा बनाना आवश्यक हो गया ताकि लोगो को स्वामी का स्पर्श करने से रोका जा सके २६ पहले ताम्वीराम अपने गुरु के मन्दिर पर चढाये गये चढावे मे से स्वामी के लिए आवश्यक स्वल्प भोजन दे दिया करते थे, परन्तु वह शीघ्र ही तिरुवन्नामलाई से चले गये । वह नयीनार से कह गये कि वह एक सप्ताह मे वापस आ जाएँगे, परन्तु वह एक साल से भी अधिक समय वाहर रहे । कुछ सप्ताह बाद नयीनार को भी अपने मठ मे जाना पडा और स्वामी के पास उनकी देखभाल करने वाला कोई भी नही रहा । भोजन के सम्वन्ध मे कोई कठिनाई नही थी । अव तक स्वामी के कई ऐसे भक्त वन चुके थे जो उनके लिए नियमपूर्वक भोजन देना चाहते थे । अधिक आवश्यकता तो दर्शको की भीड को परे रखने की थी । शीघ्र ही एक और नियमित सेवक स्वामीजी की सेवा मे आ गये । पलानीस्वामी नामक एक मलयाली साघु ने भगवान् विनायक की पूजा मे अपना जीवन समर्पित कर दिया था । वह कठोर तपस्या का जीवन विता रहे थे, दिन मे केवल एक बार खाना खाते थे और वह भी पूजा मे भगवान् को समर्पित चढावे मे से, स्वाद के लिए भोजन मे वह नमक तक नही मिलाते थे । उनके एक मित्र, जिनका नाम श्रीनिवास ऐय्यर था, ने एक दिन उनसे कहा, "आप इस पत्थर के स्वामी के चरणो मे जीवन क्यो विता रहे हो ? गुरुमूर्तम् पर एक तरुणस्वामी रहते हैं । वह पुराणो में वर्णित ध्रुव के समान तपस्या मे लीन हैं। अगर आप उनके चरणो मे जाएँ और उनकी सेवा मे अपने को अर्पित कर दें तो आपका जीवन धन्य हो जाए ।" इसी समय दूसरे व्यक्तियो ने भी उन मलयाली साधु से तरुणस्वामी की चर्चा की और कहा कि उनके पास कोई सेवक नही है और उनकी सेवा से वढकर और बडा वरदान क्या हो सकता है । मलयाली साघु गुरुमूत्तम् पर स्वामी के दशनो के लिए गये। उनके दर्शन मात्र से ही वह भावविभोर हो उठे । कुछ समय तक कर्तव्य - भावना से प्रेरित होकर उन्होने विनायक के मन्दिर मे अपनी पूजा जारी रखी, परन्तु उनका हृदय तो स्वामी के चरणो मे था और शीघ्र ही वे उनकी भक्ति मे तन्मय हो गये । इक्कीस वर्ष तक वह स्वामी को सेवा मे रहे । वह स्वामीजी की कोई विशेष सेवा नही कर सकते थे । भक्तजन उन्ह भेंट
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy