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________________ याया उसके चाचा तथा भाई को इस रहस्य का पता चल गया तो वे उसे नहीं जाने देंगे। इसलिए उसने फिर स्कूल जाने और एक विशेष कक्षा में सम्मिलित होने का बहाना किया जिसमे विद्युत सम्वन्धी पाठ पढाया जाता था। __ जब वेंकटरमण वाहर जाने के लिए तैयार हुआ तव उसके भाई ने उससे कहा, "तुम स्कूल तो जा ही रहे हो, नीचे सन्दूक में से पांच रुपये निकाल लो और रास्ते मे मेरी कालेज की फीस देते जाना।" उसे यह पता नहीं था कि वह इस प्रकार अनजाने अपने भाई को यात्रा-व्यय दे रहा है। ऐसी वात नहीं है कि वेंकटरमण के परिवार मे आध्यात्मिक चेतना का अभाव था, जिसके कारण उसके परिवार के लोग उसको उपलब्धि को नहीं पहचान सके । मन की आत्मोन्मुखी वृत्ति का दूसरी पर प्रत्यक्ष होना आवश्यक नहीं। यह सामान्यत मानव व्यक्तित्व में आत्मा के पारस्परिक प्रवाह को प्रेरित करती है और इससे वह दृश्य-शक्ति और दिव्य-ज्योति उत्पन्न होती है जो उनके सम्पक में आने वालो को अभिभूत कर लेती है। यह पारस्परिक प्रवाह अनिवाय नहीं होता। गुप्त सन्त भी ससार में हुए हैं। अभी तक वेंकटरमण की आन्तरिक अवस्था के आमामय सौन्दय ने उसके मानव शरीर को परिव्याप्त नहीं किया था और इसका कुछ भी आभास नही था। जब कुछ साल बाद वेंकटरमण के स्कूल के एक साथी रगा ऐय्यर ने उसे तिरुवन्नामलाई मे देखा, तब वह उसके प्रति भक्ति और सम्मान की भावना से इतना अधिक अभिभूत हो उठा था कि वह उसके चरणो में गिर पडा था परन्तु अव तो केवल वह अपने सामने अपने चिर-परिचित वेंकटरमण को ही देख रहा था। वाद मे जब उसने इसका कारण पूछा तब श्रीभगवान् ने केवल यही उत्तर दिया था कि किसी ने भी उसके इस परिवतन को नही पहचाना था। ___ रगा ऐय्यर ने यह भी प्रश्न किया, "तब आपने कम से कम मुझे यह क्यो नहीं बताया कि आप घर छोड़कर जा रहे हैं ?" श्रीभगवान् ने उत्तर दिया, "मैं तुम्हें कैसे बताता ? मुझे स्वय भी इसका पता नही था।" वेंकटरमण की चाची नीचे के कमरे मे थी। उसने उसे पांच रुपये दिये और उसके आगे भोजन परोसा, जिसे वह जल्दी-जल्दी खा गया । घर में एक एटलस था, उसने इसे खोला और उसे यह पता चला कि तिरुवन्नामलाई के सबसे अधिक निकट का स्टेशन तिन्दीवनम है। वस्तुत तिरुवन्नामलाई तक एक वाच लाइन का पहले ही निर्माण हो चुका था, परन्तु एटलस पुराना था और उसमे यह लाइन नही दिखायी गयी थी। वेंकटरमण ने यह अन्दाजा उगाया कि यात्रा के लिए तीन रुपये पर्याप्त होंगे और केवल तीन ही रुपये अपने पास रखे । उसने अपने भाई को एक पत्र लिखा कि वह कोई चिन्ता न
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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