SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८ रमण महपि परन्तु उस समय से जब भगवान की आत्मा न देह छोडा और एक चमकीला तारा टूटता हुआ पहाडी की ओर गया, भक्ता ने प्रत्यक्षत यह अनुभव किया है कि यह पवित्र भूमि है, उन्होने इसमे भगवान् के रहस्य को अनुभव किया है। ___ प्राचीन परम्परा के अनुसार अरुणाचल पहाडी भक्तो की कामनाओं की पूर्ति करने वाली है और शताब्दियो से तीथयात्री मनोकामनाओ की पूर्ति के लिए इसकी शरण मे गय है । परन्तु जा लोग इसकी शान्ति को अधिक गहराई से अनुभव करते है, वे कोई कामना नहीं करते क्योकि अरुणाचल का माग भगवान् का मार्ग है, जो व्यक्ति को कामनामुक्त कर देता है और यही मवमे वडी उपलब्धि है। "जब मैं तुझे माकार समझ कर तेरे निकट आता ह, तू पृथ्वी पर पहाडी के रूप मे विगजमान रहती है । जो व्यक्ति तेरे रूप को निराकार रूप मे खोजता है, उस व्यक्ति के समान है जो इस पृथ्वी पर निराकार आकाश की खोज में यात्रा कर रहा है। तेरी प्रकृति पर विचारशून्य होकर ध्यान केन्द्रित करना अपने को उम खांड की गुडिया के समान विस्मृत कर देना है जो समुद्र मे दुवोए जाने पर इममे विलीन हो जाती है। जब मुझे यह ज्ञान हो जाता है कि मैं कौन हूँ, तेरे सिवा और कोन मुझमे हो सकता है । ओह | तू अरुणाचल पहाडी के रूप में विद्यमान है। (एट स्टेजाज ऑन श्री अरुणाचल मे) केवल वही व्यक्ति ही नही, जो पहले यहाँ आये है और जिन्होंने श्रीभगवान् के सौन्दय को शारीरिक रूप मे देन्बा है उनके आकपण को अनुभव करते है । उनका सौभाग्य ता अकल्पनीय है, परन्तु अन्य व्यक्ति भी उनकी ओर, अरुणाचल की ओर आकर्षित होते हैं। और भक्तजन भी आयेंगे । उत्तर भारत की एक विख्यात महिला मन्त आनन्दमयी माँ भगवान् के माग्य पर आयी । अपने लिए विणेप म्ए स तैयार विय गये प्रतिष्ठित स्थान पर बैठने से इन्कार करते हुए वे यहने लगी, "यह सब आडम्बर क्यो ? मैं अपने पिता के प्रति श्रद्धाजलि अर्पित परन आई है. मैं भी दूसरो के माथ भूमि पर बैठेगी।" श्रीमती तालेयार सान न जना दक्षिण भारतीय महिला मन्त से अपने तथा अन्य जीवित भवता ये सम्बध में पूछा तो उन्हान उत्तर दिया, "वे सूय थे और हम उमकी किरणे हैं।" ईमा की कहानी तो काय पर खत्म हो गयी थी, परन्तु यह कहानी समाप्त नहीं हई । वस्तुत यह कोई नवीन धम नहीं है, जिसका उदघाटन श्रीभगवान् न इम पृथ्वी पर किया । प्रत्येर दण और धम में लोगा ये लिए जो एम
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy