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________________ मतत उपस्थिति तीसरी चीज है श्रीभगवान् की महान् थाती और दायित्व । भक्तजन अपनी प्रकृति और योग्यता के अनुरूप इसमें योगदान कर रहे है। कई भक्त ऐसे है जो अव मौन चिन्तन मे बैठने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते या जो मात्वना प्राप्त करने और अपने हृदय की भक्ति तथा अनुराग प्रकट करन के लिए आश्रम आते हैं। वह उस शिक्षक के शिष्य है जिसने कहा था, "भाषणो से व्यक्तियो का मनोरजन हो सकता है सुधार तो नहीं । दूसरी ओर मौन स्थायी होता है और समस्त मानव जाति को लाभ पहुंचाता है। यद्यपि उनका चिन्तन भगवान् के महान् आध्यात्मिक मौन के समकक्ष नहीं था, तथापि यह न केवल उनकी अनुकम्पा को ग्रहण करता है बल्कि उसका प्रसार करता है और इसका प्रभाव अवश्य होगा। अगर कई व्यक्ति मिल कर पूजा करते हैं या चिन्तन करते है तो उसका प्रभाव मामूहिक होता है। __दूसरे लोग भापण या लेखन द्वारा ऐसी दिलचस्पी पैदा करना चाहते है जो प्रज्ञा मे पुष्पित हो सकती है। वाह्य गतिविधियो में दिलचस्पी प्रदशित करने वाले व्यक्तियो पर सगठन का दायित्व है। यह भी एक साधना है और भगवान् को यह तभी स्वीकार है जब इमे साधना रूप में किया जाये। वह एक चिन्तन भवन का निर्माण करना चाहते हैं। इस समय मन्दिर और पुगन मभा-भवन के बीच एक प्रस्तर का स्मारक है, जिस पर लिंग का चिह्न है । इसके स्पर ताड के पत्तो की छत बनी हुई है। ___ मवत्र श्रीभगवान् की उपस्थिति को लोग अनुभव करते हैं, परन्तु फिर भी वातावरण पहले से भिन्न है। पहले की तरह स्मारक के समक्ष प्रात और माय वेदमन्यो का पाठ होता है। जब भक्तजन वहाँ चिन्तन में बैठते हैं तव वैसा ही वातावरण होता है जैसा कि सभा-भवन मे भगवान् के सम्मुन वैठने पर होता था। वही शक्ति है और वही भगवान का सूक्ष्म भाग दर्शन है। वेदमन्त्रा के पाठ के ममय स्मारक पर पूजा की जाती है और भगवान् के १०८ नामी का पाठ किया जाता है। परन्तु पुराने सभा-भवन में इससे मृदुलतर वातावरण है, ऐसा लगता है यह भगवान् के चिर निवास के सानिध्य मे अनुप्राणित है। महासमाधि के कुछ महीने वाद, इस सभा-भवन को आग से क्षति पहुंची थी परन्तु मौभाग्यवश इमका विनाश नही हुआ था। ___वह टोटा कक्ष भी विद्यमान है जहाँ श्रीभगवान् के अन्तिम दिन गुजरे थे । उम कक्ष में एक वहा चित्र टगा हुआ है। ऐसा लगता है जैसे यह जीवित चित्र हो और भक्तो की भक्ति भावना का प्रत्युत्तर दे रहा हो । यहाँ व विभिन्न वन्तुएं ग्नी गयी है जिनका श्रीभगवान् ने प्रयोग या म्पण पिया~~ उनका दण्ट और कमण्डल, मोर वे पग का पवा, धूमने वाली पुस्तको की जलमारी तथा अय बहुत मी डोटी-छोटी वस्तुएँ। नन्त जव सदा के निरा
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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