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________________ जागरण ब्रण्टन"लय होना ? कोई अपने व्यक्तित्व की भावना को किस प्रकार भुला सकता है " श्रीरमण-"प्रत्येक मनुष्य के मन में सवप्रथम और मवप्रधान विचार 'मैं' का होता है। इस विचार के बाद ही अन्य कोई विचार जन्म ले सकते हैं। प्रथम उत्तम पुरुष के सवनाम 'मैं' के मन में विचार के बाद ही द्वितीय मध्यम पुरुष के सर्वनाम 'तुम' की उत्पत्ति होती है। अगर आप मानसिक रूप से 'मैं' के सूत्र का अनुसरण कर सकें तो आपको यह पता चलेगा कि जिस प्रकार यह सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाला विचार है, उसी प्रकार यह सबसे अन्त मे लोप होने वाला विचार है। इसे आप अनुभव द्वारा जान सकते हैं।" अष्टन-"आपका कहने का अभिप्राय यह है कि इस प्रकार अपने आप में मानसिक अन्वेषण सम्भव है।" श्रीरमण-"निश्चित रूप से । अपने अन्दर प्रवेश करना सम्भव है और अन्त में धीरे-धीरे 'मैं' का लोप हो जाता है।" अण्टन-"इसके बाद क्या वध रहता है ? इस अवस्था मे क्या व्यक्ति बिलकुल अचेतन बन जाता है या वज्रमूर्ख बन जाता है ?" __ श्रीरमण-~“नहीं, इसके विपरीत उसमे वह चैतन्य प्रकट होता है जो अमर है और तव वह वस्तुत बुद्धिमान बन जाता है जब उसे अपने वास्तविक स्वरूप का पता चल जाता है। मनुष्य का वही वास्तविक स्वरूप है ।" मण्टन-~~"परन्तु निश्चित ही 'मैं' का भाव इसके साथ सम्बद्ध है।" श्रीरमण-~-" 'मैं' का भाव व्यक्ति, शरीर और मस्प्तिक से सम्बद्ध है । जब मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान लेता है सब प्रथम बार उसकी आत्मा की गहराइयो में से कोई ऐसी चीज जन्म लेती है, जो उस पर पूरी तरह हावी हो जाती है। यह चीज हमारे मन के पीछे है, यह असीमित दिव्य और शाश्वत है। कई लोग इसे स्वर्ग का साम्राज्य कहते है, दूसरे इसे आत्मा और अन्य लोग निर्वाण तथा हिन्दू इसे मुक्ति के नाम से सम्बोधित करते हैं, आप जो भी नाम चाहें, इसे दे सकते हैं। इस अवस्था में मनुष्य अपने को स्रोता नहीं बल्कि पा लेता है।" जब तक मनुष्य इस सत्य आत्म-तत्त्व की खोज नहीं करेगा, सन्देह और अनिश्चितता उसे जीवन भर घेरे रहेगी। महान् सम्राट और राजनीतिज्ञ दूसरो पर शासन करने का प्रयत्न करते हैं जवकि वे अपने हृदय के अन्त स्थल मे यह मच्छी तरह जानते हैं कि वे अपने पर शासन नही कर सकते। परन्तु जो व्यक्ति आत्मा की गहराइयों में प्रवेश करता है, विश्व की महत्तम शक्ति भी उसकी आज्ञा का अनुसरण करती है। जब तक कि मापको यह पता नहीं कि आप म्चय कौन है, संसार की अन्य वस्तुओ के जानने का क्या उपयोग है ? मनुष्य
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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