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________________ १८८ रमण महपि दर्शनार्थियों की भीड एकत्रित हुई। उन्होने दर्शन दिये और अपनी प्रशस्ति मे रचित अनेक नये गीत सुने । कई गीत स्वय उन्होने भी पढे । नगर से मन्दिर का हाथी आया, उसने उनके सामने मस्तक नवाया और अपनी सूंड से उनके चरण स्पर्श किये । उत्तर भारत की एक रानी को इस दृश्य का चलचित्र लेने की आज्ञा दी गयी थी । आशका की शोकमयी छाया मे यह समारोह हो रहा था । ? बहुत से लोग पहले ही यह अनुभव कर चुके ये कि अब कुछ सप्ताहो या दिनो की बात है । अब जब स्थिति मवया निराशाजनक घोषित कर दी गयी तो श्रीभगवान् से पूछा गया कि वह स्वयं बताएँ कि अब कौन-सा उपचार किया जाये । उन्होने कहा, "क्या मैंने कभी किसी उपचार के लिए कहा है आप ही लोग मेरे लिए विभिन्न उपचार बता रहे हैं । इसलिए आप स्वयं ही मिल कर यह निर्णय करें कि अब क्या किया जाना चाहिए । अगर मुझ से पूछा जाता तो मैं सदा यह कहता, जैसा कि में शुरू से कहता आ रहा हूँ कि कोई भी उपचार आवश्यक नही है । प्रकृति को अपने मार्ग का अनुसरण करने दो।” केवल इसके वाद होमियोपैथी चिकित्सा की गयी और उसके बाद आयुर्वेदिक चिकित्सा, परन्तु अव वहुत विलम्व हो चुका था । जव तक शारीरिक रूप से असम्भव नही हो गया श्रीभगवान् ने अपनी सामान्य दैनिकचर्या जारी रखी। वह सूर्योदय से एक घटा पूर्व स्नान कर लेते थे, निश्चित समयो पर प्रात और साथ भक्तो को दर्शन देने के लिए बैठ जाते, आश्रम का पत्र-व्यवहार देखते और जाश्रम के प्रकाशनो के मुद्रण का निरीक्षण करते तथा प्राय अपने सुझाव भी देते थे । जनवरी के बाद वह इतने अधिक दुर्बल हो गये कि सभा भवन मे बैठ कर दर्शन नही दे सकते थे । सभा भवन के ठीक पूर्व मे, सडक के पार एक छोटा स्नानगृह, जिसके साथ एक कोठरी सलग्न थी, बनाया गया और अन्त तक वह वहाँ रहे । बाहर एक तग छोटा वरामदा या जहाँ उनका तख्त रखा गया और अन्त तक तिरुवन्नामलाई मे उनकी बीमारी के समाचार से एकत्रित भक्तजन उनका दर्शन करते रहे । जब तक यह व्यवस्था सम्भव थी, वह इसमे किसी प्रकार की बाधा पसन्द नही करते थे । प्रात काल और मध्याह्नोत्तर भक्तजन सभा भवन के वरामदे मे उनके सम्मुख बैठते । बाद मे जब वह बहुत दुबल हो गये तो भक्तजन प्रात और साय उनके कमरे के खुले दरवाजे के सामने से पक्ति वनाकर गुजर जाते थे । एक दिन श्रीभगवान् की स्थिति चिन्ताजनक हा गयी और उनके दर्शन वन्द कर दिये गये। जैसे ही उन्ह इस बात का पता चला उन्होने नाराजगी जाहिर की ओर दणन जारी रखने का आदेश दिया । भक्तजन प्रतिदिन उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थनाएं करते और
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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