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________________ १८२ रमण महर्षि काल बाद श्रीभगवान् को स्वय उसका अनुवाद करने की प्रेरणा हुई । कुछ दिन तक उन्होंने इसकी उपेक्षा की परन्तु अनुवाद के शब्द एक-एक पद्य करके स्वय उनके सम्मुस आते गये, मानो वे पहले से लिखे गये हैं। उन्होने कागज पेंसिल मंगाई और उन्हे लिख लिया। यह सब कार्य इतना अनायास सयत हो गया कि उन्होने हंसते हुए कहा कि उन्ह इसका भय था कि कोई लेखक आकर यह दावा न करने लगे कि यह कृति वस्तुत उमकी है और श्रीभगवान् ने उसकी नकल की है। श्रीभगवान् की रचनाओ मे भगवद्गीता के ४२ श्लोको का सकलन भी था, जिसका चयन और पुन सयोजन उन्होंने अपनी शिक्षाओ की अभिव्यक्ति के लिए एक भक्त की प्राथना पर किया था। इस पुस्तक का अनुवाद अग्रेज़ी मे दो साग सिलस्टियल के नाम से हुआ है।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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