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________________ लिखित रचनाएँ १८१ वह उस शराबी के समान है जो अपने स्वरूप और स्थिति के सम्बन्ध में पूछता है। जब कि तथ्यत शरीर आत्मा मे है, यह सोचना कि आत्मा इस निर्जीव शरीर मे है, यह सोचने के समान है कि सिनेमा का पर्दा जिस पर चित्र आता है, चित्र के अन्दर है। क्या आभूपण की, सोने के अतिरिक्त जिसका वह बना हुआ है, पृथक् सत्ता है ? आत्मा से पृथक् शरीर की सत्ता कहाँ है ? अज्ञानी शरीर को आत्मा समझ लेते है परन्तु जानी अर्थात् आत्मज्ञाता आत्मा को आत्मा रूप मे जानता है । वह एक आत्मा, वास्तविक सत्ता सदा के लिए विराजमान है। अगर आदि गुरु दक्षिणामूर्ति ने मौन रूप से यह उपदेश दिया था तो इसे वाणी में कौन प्रकट कर सकता है ? कुछ अनुवाद भी श्रीभगवान् ने किये है, ये मुख्यत शकराचाय के ग्रन्थो के है । एक वार विरूपाक्ष कन्दरा मे आने वाले एक अभ्यागत शकराचार्य रचित विधेकचूडामणि की एक प्रति वही छोड गये थे । इस ग्रन्थ को देखने के वाद, श्रीभगवान् ने गम्वीरम शेपाय्यार से इसका अध्ययन करने के लिए कहा । वह सस्कृत नही जानते थे, इसलिए वह इसे तमिल मे चाहते थे । पलानी म्वामी को उपरोक्त पुस्तक का तमिल सस्करण कही से उधार मिल गया। जव शेषाय्यार ने इस तमिल सस्करण को देखा तो उन्होंने प्रकाशक को इसकी एक प्रति मेजने के लिए कहा। परन्तु उन्हें यह उत्तर मिला कि पुस्तक अमुद्रित है इसलिए उन्होने श्रीभगवान् से इसका सरल तमिल गद्य मे अनुवाद करने के लिए कहा । श्रीभगवान् ने लिखना प्रारम्भ कर दिया । परन्तु जैसे ही उन्होंने कुछ काय सम्पन्न किया, शेषाय्यार ने जो पद्य सस्करण मंगाया था, वह भी आ गया, इसलिए उन्होंने यह काम अधूरा ही छोड़ दिया। कुछ वप वाद, एक-दूसरे भक्त की प्राथना पर उन्होंने यह काम फिर हाथ में लिया और इसे पूरा किया। भक्त ने श्रीभगवान से यह कहा कि इस कार्य की पूर्ति का आग्रह उसने प्रकाशन के उद्देश्य से किया था। इस पर श्रीभगवान ने एक प्रस्तावना लिखी कि यद्यपि तमिल पद्यानुवाद पहले से विद्यमान है, एक स्वतन्य तमिल अनुवाद का भी अपना महत्त्व है। स्वय प्रस्तावना में पुस्तक का सार निहित है, सिद्धान्त तथा मार्ग की सक्षिप्त व्याख्या है।। उनको अन्तिम कृति शकराचाय रचित आत्म बोध का तमिल अनुवाद था । यह पुस्तक प्रारम्भिक दिनो में विरूपाक्ष में उनके पास थी परन्तु उन्होने इसका अनुवाद करने के विषय में कभी नहीं सोचा था। सन् १६४६ मे एक तमिल अनुवाद, जो सम्भवत बहुत पूर्ण नहीं था, आश्रम भेजा गया। कुछ
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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