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________________ भक्तजन १६५ श्रीभगवान हँस पडे "ओह | वह व्यक्ति । वह तो कभी का लुप्त हो गया।" एक बार विश्वनाथन से बातें करते समय श्रीभगवान ने अपने विनोदी स्वभाव मे कहा, "कम से कम घर छोडते समय तुम सस्कृत तो जानते थे, परन्तु जब मैंने घर छोडा, मैं कुछ भी नहीं जानता था।" ___ आश्रम मे अन्य व्यक्ति भी थे जो सस्कृत जानते थे और जिन्होंने धमग्रन्थो का अध्ययन किया था। इनमे एक रिटायर्ड प्रोफेसर वेंकटरमैया थे। जो साधु वन गये थे और जिन्होने कुछ वष तक आश्रम की डायरी रखी थी यह डायरी आश्रम के 'टॉक्स विद दी महपि' नाम से प्रकाशित की है । इसके अतिरिक्त स्कूल अध्यापक सुन्दरेश ऐय्यर भी, जिनका पहले जिक्र किया गया है, और जो तिरुव नामलाई मे अध्यापन-काय करते थे, सस्कृत जानते थे । ___ जिस वप आश्रम मे विश्वनाथन आये उसी वर्ष मुरुगानार भी आये। उनका स्थान प्रमुख तमिल कवियो मे था। श्रीभगवान् स्वय कई वार उनकी कविताओं की चर्चा करते या उनका पाठ करवाते । मुरुगानार ने ही, 'फॉर्टी वसिज' का पुस्तक रूप मे सग्रह किया था और उन्होने उन पर तमिल मे एक विद्वतापूर्ण टिप्पणी भी लिखी है। संगीतज्ञ रामस्वामी ऐय्यर अव भी एक पुराने भक्त हैं। वह श्रीभगवान् से उम्र मे बडे थे। वह पहले-पहले सन १९०७ मे भगवान् के पास आये थे। उन्होने भगवान् की प्रशस्ति मे गीत-रचना भी की। रामस्वामी पिल्लई सन् १९११ मे, जब वे युवक थे सीधे कालेज से आश्रम में आये थे और वह वहाँ रहे । विश्वनाथन और मुरुगानार की तरह उन्होंने साघु का वेप धारण कर लिया, परन्तु उन्होंने भक्ति और सेवा माग का आश्रय लिया। एक वार, सन् १९४७ मे पहाडी पर टहलते समय श्रीभगवान् के पैर में पत्थर से चोट लग गयीं। अगले दिन वृद्ध परन्तु युवकोचित स्फूति और उत्साह से सम्पन्न रामस्वामी पिल्लई ने पहाही की और सीठियां बनाने का काय शुरू कर दिया। उन्होने अकेले ही प्रात से लेकर साय तक निरन्तर कार्य किया। जब तक कि वह माग पूरा नहीं बन गया पत्थर को मीढ़ियों बनायी गयीं, जहां पत्थर टेढ़े-मेढे थे, उन्हें तराशा गया और जहाँ ढलान थी, उसे ठीक किया गया। यह सीढियां इतने अच्छे ढग से बनायी गयी थी कि आज तक वर्षा में भी ज्यो की त्यो खडी हैं, परन्तु इनकी मरम्मत नही हुई क्योकि इन सीढियों के बनने के तत्काल वाद श्रीभगवान ने अपने क्षीण स्वास्थ्य के कारण पहाडी पर सैर करना छोड दिया था। श्रीभगवान् के स्कूल के दिनो के पुराने साथी रगा ऐय्यर, जिनका पहले
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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