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________________ १६२ रमण महर्षि आज आध्यात्मिक दृष्टि से अन्धकारावच्छन्न इस युग मे जवकि अनेक भक्तजन गुरु की तलाश मे हैं और गुरु का मिलना बहुत कठिन है भगवान् ने स्वय सद्गुरु और दिव्य मार्गदशक के रूप मे उन भक्तो के लिए अवतार लिया जो उनकी चरण-शरण मे आये। उन्होंने उस साधना की घोपणा की जो सबके लिए सहज है । उनकी कृपा से सभी इस माधना मे पूरे उतरते है। विचार का प्रयोग केवल उन्ही व्यक्तियो तक सीमित नही था जो तिरुवन्नामलाई जा सकते थे। यह केवल हिन्दुओ तक भी सीमित नहीं था । श्रीभगवान् की शिक्षा सभी धर्मों का सार है, यह खुले रूप मे गुह्य वस्तु की घोषणा करती है । अद्वैत ताओवाद और वौद्ध घम का केन्द्रीय तत्त्व है। आन्तरिक गुरु का सिद्धान्त अपने पूर्ण अर्थ मे, 'ईसा आप मे विराजमान हैं', का सिद्धान्त है। यह विचार इस्लामी सिद्धान्त के अन्तिम सत्य की ओर ले जाता है, 'भगवान् के अतिरिक्त कोई देवता नही, परमात्मा के अतिरिक्त कोई आत्मा नहीं'। श्रीभगवान् धर्मों के पारस्परिक भेदो से परे थे। हिन्दू ग्रन्थ उन्हे उपलब्ध थे, इसलिए उन्होने उनका अध्ययन किया और उनकी शब्दावली के अनुसार व्याख्या की । परन्तु जब उनसे प्रश्न किये जाते तो वे दूसरे धर्मों की शब्दावली मे भी व्याख्या करने के लिए प्रस्तुत रहते थे। जिस साधना का उन्होंने उपदेश दिया, वह किसी धर्म पर निभर नही है। न केवल हिन्दू उनके पास आते थे बल्कि वौद्ध, ईसाई, मुस्लिम, यहूदी और पारसी सभी आते थे और वे किसी से धर्म-परिवतन के लिए नही कहते थे। गुरु के प्रति अनन्य भक्ति और उसकी कृपा का भक्त के प्रति प्रवाह प्रत्येक धम का सारतत्त्व और आत्म-अन्वेषण सभी धर्मों का अन्तिम सत्य है ।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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