SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश १५१ है । इसलिए यह एक 'अह' द्वारा दूसरे 'अह' की खोज का मामला नही है ।" ( वही ) सम्पूर्ण मन को इसके स्रोत पर केन्द्रित करना इसे स्वयं अपने पर अन्तराभिमुख करना है । यह मनोवैज्ञानिक अन्त निरीक्षण नही है । यह मन के विश्लेषण करने का प्रयास नही है, बल्कि मन के पीछे विद्यमान उस आत्मा में निमग्न होना और उसे जगाना है, जिसके लिए मन परदे का काम करता है । श्रीभगवान् का भक्तो को उपदेश था कि चिन्तन करें और अपने से प्रश्न करें, 'मैं कौन हूँ ?' इसके साथ ही हृदय पर छाती की बायी ओर विद्यमान शारीरिक अग पर नही बल्कि दाहिनी ओर विद्यमान आध्यात्मिक हृदय पर, ध्यान केन्द्रित करें । प्रश्नकर्त्ता की प्रकृति के अनुसार, श्रीभगवान् भौतिक या मानसिक पक्ष पर, हृदय पर ध्यान केन्द्रित करने पर या 'मैं कौन हूँ ?' इस प्रश्न पर बल देते थे । छाती की दायी ओर विद्यमान आध्यात्मिक हृदय भौतिक चक्रो में से एक नही है, यह अह का केन्द्र और स्रोत है और आत्मा का निवास है और इसलिए एकता का स्थान है । जव श्रीभगवान् से यह प्रश्न किया गया कि इस स्थान पर हृदय की स्थिति के लिए धम-ग्रन्थो का या अन्य कौन-सा प्रमाण है तो उन्होंन कहा कि उनका ऐसा निजी अनुभव है । बाद मे आयुर्वेद सम्बन्धी एक मलयालम ग्रन्थ द्वारा भी उनके कथन की पुष्टि हुई । जिन व्यक्तियो ने उनके आदेशो का पालन किया है, उनका भी ऐसा अनुभव है। नीचे हम महर्षीज गॉस्पल से जिसमे श्रीभगवान् ने इसे विस्तार से समझाया है, एक वार्तालाप उद्धृत कर रहे हैं । भक्त श्री भगवान ने भौतिक शरीर के अन्दर हृदय के एक विशेष स्थान की ओर निर्देश किया है, अर्थात् छाती के मध्य भाग से दाहिनी ओर दो अगुल पर आध्यात्मिक हृदय है । भगवान् हाँ, सन्तो के प्रभाव के अनुसार, यह आध्यात्मिक अनुभव का केन्द्र है | यह आध्यात्मिक हृदय - केन्द्र, हृदय नाम से विख्यात रक्त का संचालन करने वाले पेशीय अग से बिलकुल भिन्न है । आध्यात्मिक हृदय केन्द्र शरीर का अग नही है । आप हृदय सम्बन्ध मे यही कह सकते हैं कि यह आपके अस्तित्व का मार है, जिसके साथ आप वस्तुत एक रूप हैं, चाहे आप जाग्रत अवस्था में हो, मुपुप्ति मे हो या स्वप्नावस्था मे हो, चाहे आप काय कर रहे हो या आप समाधि में लीन हो । , बुद्धिमान व्यक्ति का हृदय उसके दाहिनी ओर और मूझ का बाय ओर होता है ।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy