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________________ १४६ रमण महर्षि करके स्थिर और एकाग्र दृष्टि से देखते, उनके नेत्रो की ज्योति और भक्ति भक्त की विचार प्रक्रिया को भेदकर उसके अन्तर्तम में प्रवेश कर जाती । कई बार ऐसे लगता जैसे कोई विद्युत्-धारा किसी मे प्रवेश कर रही हो या विस्तृत शान्ति या प्रकाशपुज प्रवेश कर रहे हो । एक भक्त ने इस प्रकार वर्णन किया है "एकाएक भगवान ने अपने देदीप्यमान और पारदर्शी नेय मेरी ओर किये । इससे पहले मैं देर तक उनकी ओर नहीं देख सकता था । अब न जाने कितनी देर तक मैं उन विकट और आश्चर्यमय नेत्रो की ओर सीचे देखता रहा । उन्होने मुझे एक प्रकार के स्पन्दन मे जकड लिया जिसे मैं स्पष्टत सुन सकता था।" इसके बाद भक्त के हृदय मे सदा उदात्त भावना का और अजेय विश्वास का प्रादुर्भाव होता था कि भगवान ने उसे अपनी शरण में ले लिया है, अब से वह ही उसके सरक्षक और मागदर्शक हैं । जो व्यक्ति इस तथ्य से परिचित थे वह यह जान जाते थे कि इस प्रकार की दीक्षा कव घटित होती है, परन्तु यह सामान्यत गुप्त रूप से होती। यह वेद मन्त्रोच्चारण के समय हो सकती थी जब बहुत कम लोग देख रहे होते थे या सूर्योदय से पूर्व या उस समय जव उनके निकट कोई व्यक्ति न होता या थोडे व्यक्ति होते, भक्त के मन मे श्रीभगवान के निकट जाने की प्रेरणा होती। मौन द्वारा दीक्षा भी इतनी वास्तविक थी। यह उन भक्तो के हृदय में प्रवेश करती थी जो तिरुवन्नामलाई मे शारीरिक रूप से जाने मे असमथ होकर अपने हृदयो मे भगवान की ओर अन्तर्मुख होते थे। कई बार यह दीक्षा स्वप्न में दी जाती, जैसे कि नटेश भुदालियर को दी गयी थी। एक वार भक्त को अपनी शरण में लेने और उसे मौन दीक्षा देने के बाद, अपने मागदशन और सरक्षण के सम्बन्ध में श्रीभगवान से बढ़कर कोई भी शिक्षक अधिक कृतनिश्चय नहीं था। उन्होंने शिवप्रकाशम् पिल्लई को अपने व्याख्या ग्रन्थ मे, जो बाद मे 'हू एम आई' के नाम से प्रकाशित हुआ, इस प्रकार आश्वासन दिया था, "जिस व्यक्ति ने गुरु की कृपा प्राप्त कर ली, निस्सन्देह उसकी रक्षा की जायेगी, उसका कभी भी परित्याग नहीं किया जायेगा, जैसे कि जो शिकार चीते के पजो मे फंस जाता है, वह कभी भी नही वच पाता।" एक डच भक्त श्री एल० हार्ट्ज़ ने, जो केवल थोडी अवधि के लिए आश्रम मे ठहर सकते थे और शायद जिन्हे यह भय था कि आश्रम में जाने के बाद कही उनका सकल्प डिग न जाय, श्रीभगवान् से आश्वासन श्रीभगवान ने उनसे कहा था, "अगर आप भगवान को छोड भी आपको कभी नहीं छोड़ेंगे।" आश्वासन को असाधारण शक्ति और प्रत्यक्षता से प्रभावि
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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