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________________ दूसरा अध्याय जागरण भगवान् रमण महर्षि के ज्ञान-मार्गी उपदेशो और शिक्षाओ के अनुसार, अगर इस ज्ञान-धारा को निरन्तर प्रयत्नपूर्वक प्रवाहित रखा जाय तो यह प्रबल और अधिक स्थिर रूप धारण करती जाती है और अन्तत सहज समाधि की ओर ले जाती है। सहज समाधि की अवस्था मे व्यक्ति अपने शुद्ध दिव्यस्वरूप मे स्थित रहते हुए जीवन के सामान्य कार्यकलाप करता रहता है। पृथ्वी पर इसी जीवन में इस स्थिति को प्राप्त करना वस्तुत दुर्लभ है । यह जीवन तो साक्षात्कार की ओर लम्वी तीथयात्रा का केवल एक भाग है और प्रत्येक यात्री इसे उस विन्दु से प्रारम्भ करता है, जहां वह पहले पहुँच चुका है, जैसे कि एक तीर्थयात्री रात को सो जाता है और अगले प्रात काल उसी स्थान पर उठ खडा होता है। आज के प्रयासो से वह कितनी दूर पहुँचेगा, यह अशत उस सोपान पर निर्भर करता है, जहां से उसने चलना प्रारम्भ किया है और अशत इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितना प्रयास करता है। जीवन एक तीर्थयात्रा है, हमारे जीवन का कोई लक्ष्य है और इस लक्ष्य की ओर ले जाने वाले मार्ग पर हमे दृढ निश्चय के साथ कदम वढाना है, यह खोज भी स्वय मे एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। श्रीभगवान को कुछ महीने बाद ऐसा अनुभव हुआ। इसके लिए उन्हें कोई खोज, कोई प्रयत्न और कोई तैयारी नही करनी पडी। उन्होने स्वय इसका वर्णन इस प्रकार किया है "मदरा से सदा के लिए रवाना होने से लगभग छ सप्ताह पूर्व मेरे जीवन मे यह महान् परिवतन हुआ। अपने चाचा के मकान की पहली मजिल पर मैं अकेला कमरे मे बैठा हुआ था। मुझे कभी कोई बीमारी नही हई थी और उस दिन मेरा स्वास्थ्य भी विलकुल ठीक था, परन्त एकाएक मृत्यु के भीपण भय ने मुझे आन्दोलित कर दिया। मेरा स्वास्थ्य भी खराव नही था, जिसके कारण मुझे यह भय हुआ हो और मैंने इस भय के कारण का पता लगाने की भी कोई चेप्टा नही की। मुझे केवल ऐसा अनुभव होने लगा कि 'मुझे मरना है' और मैंने यह मोचना शुरू
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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