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________________ १४२ रमण महर्षि इसीलिए एक ज्ञानी की मानवीय विशेपताएं दूसरे से सर्वथा भिन्न हो सकती हैं। श्रीभगवान् की एक विशेषता उनकी विलक्षणता और सूक्ष्मदर्शिता थी । इसमे कोई सन्देह नही प्रतीत होता कि जैसे उन्होने विक्षोभ से बचने के लिए तिरुवन्नामलाई में अपने प्रारम्भिक वर्षों में अपने को मौनी कहा जाना स्वीकार किया वैसे ही उन्होने एकरूपता का आग्रह करने या सम्बन्ध स्वीकार करने की सैद्धान्तिक असम्भवता का लाभ उठाया ताकि वह ऐसे लोगो की जो उनके वास्तविक भक्त नही थे, उपदेश की अनुचित मांगो से बच सकें। यह वही अद्भुत वात है कि उनकी प्रतिरक्षा कितनी सफल थी, इससे वास्तविक भक्त नही छले जाते थे और न ही उन्हे छलने का कोई इरादा था । ____ आओ, श्रीभगवान् के वक्तव्यो की ध्यानपूर्वक परीक्षा करे। वह कभीकभी कहते थे कि उनके कोई शिष्य नही हैं । उन्होने कभी यह स्पष्टत नही कहा कि वह गुरु थे, हालांकि वह गुरु का प्रयोग ज्ञानी के अर्थ मे करते थे और इस तरीके से करते थे जिससे यह सन्देह न रह जाये कि वह गुरु थे । वह कई बार 'रमण सद्गुरु' के गीत मे सम्मिलित होते थे । __इसके अतिरिक्त जब कोई भक्त वस्तुत व्यथित होता था और समाधान की खोज कर रहा होता था वह उसे इस ढग से विश्वास दिलाते थे कि सन्देह की कोई गजाइश ही नही रहती थी। श्रीभगवान के एक अग्रेज शिष्य मेजर चैडविक ने १९४० मे श्रीभगवान् द्वारा दिये गये आश्वासन का लिखित प्रमाण रखा था चंडविक भगवान् का कहना है, उनके कोई शिष्य नही है । भगवान् हों। चंडविक वह यह भी कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति मुक्ति प्राप्त करना चाहता है तो उसके लिए गुरु आवश्यक है। भगवान् हां। चैडविक फिर मुझे क्या करना चाहिए ? क्या इतने वर्षों तक मेरा आश्रम मे रहना व्यर्थ गया ? तो क्या फिर मैं दीक्षा के लिए किसी और गुरु की तलाश मे जाऊँ क्योकि भगवान् कहते हैं कि वह गुरु नहीं हैं। भगवान् इतनी दूर से यहां आने और इतनी देर तक यहां रहने का आप क्या कारण समझते है ? आप मन्देह क्यो करते हैं ? अगर कही अन्यत्र गुरु ढूंढने की आवश्यकता होती तो आप वहुत पहले ही यहां से चले गये होते। गुरु या बानी अपने मे और दूसरो मे कोई अन्तर नहीं देखता। उसके लिए सभी ज्ञानी है, मभी उसके साथ एकरूप हैं, इमलिए जानी यह विम प्रकार कह सकता है कि अमुक व्यक्ति उमका गिप्य है। परन्तु जो मुक्त नहीं है, वह मवको अनेकधा देखता है, वह मवको अपने से भिन्न म्प मे देयता है, इसलिए
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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