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________________ रमण महर्षि विभिन्न रूपो के आधार बन सकते हैं। परन्तु यह सब एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं, उस लक्ष्य की ओर जो विचारातीत है और जिसका वर्णन शब्दो को शक्ति से परे है। आध्यात्मिक शिक्षक सैद्धान्तिक वाद-विवाद को प्रोत्साहन नही देता और इसकी सर्वथा उपेक्षा कर देता है। बुद्ध ने व्यर्थ के सद्धान्तिक प्रश्नो का उत्तर देने से इन्कार कर दिया और कुरान व्यर्थ की मगजपच्ची के विरुद्ध चेतावनी देता है। वाद की पीढियो मे जब आध्यात्मिक अग्नि की ज्वाला मन्द पड़ जाती है, व्याख्याताओ को सिद्धान्त का मार्ग सरल दिखायी देता है । सिद्धान्त को वास्तविक शिक्षा बता कर वह बहुत हानि पहुंचाते हैं । भगवान के पुराने शिष्य बहुत कम प्रश्न पूछते हैं, कई तो विलकुल ही नहीं पूछते । प्राय नवागन्तुक ही प्रश्न करते हैं और उन्हे उनके उत्तर दिये जाते हैं । ये उत्तर शिक्षा नहीं हैं, ये तो केवल शिक्षा का साइनबोर्ड हैं। अगर श्रीभगवान् से प्रश्न अग्रेजी मे किये जाते हैं तो वह एक दुभापिये के माध्यम से उत्तर देते हैं । यद्यपि वह धाराप्रवाह अग्रेजी नहीं बोल सकते वह सब कुछ समझते हैं । अगर कही-थोड़ी सी भी अशुद्धि होती है तो वह दुभाषिये को टोकते हैं। यद्यपि श्रीभगवान् के उत्तर सैद्धान्तिक दृष्टि से एक जैसे होते हैं परन्तु प्रश्नकर्ता को दृष्टि में रखते हुए उनमे वहुत भेद होता है। एक ईसाई मिशनरी ने पूछा, "क्या भगवान् वैयक्तिक है ?" और श्रीभगवान् ने अद्वैत के सिद्धान्त के साथ समझौता किये बिना, उसके लिए उत्तर को सरल बनाने का प्रयास किया "हां, वह सदा उत्तम पुरुष होता है, 'मैं' तुम से हमेशा पहले आता है। अगर आप सासारिक वस्तुओ को महत्त्व देंगे, तो भगवान् पृष्ठभूमि मे चला जायेगा, अगर आप अन्य मव का परित्याग कर देंगे और केवल उसी की खोज करेंगे, वही केवल मैं, आत्मा के रूप में विराजमान रहेगा।" क्या मिशनरी को यह याद आया होगा कि यही नाम है जिसकी घोषणा भगवान् ने भूसा के माध्यम से की। श्रीभगवान् कभी-कभी 'मैं हूँ" की श्रेष्ठता का दिव्य नाम के रूप मे प्रतिपादन किया करते थे। पौने पांच बजे है। श्रीभगवान अपने कठोर घुटनो और टांगो की मालिश करते हैं और डण्डे के लिए हाथ बढाते हैं। कई बार उन्हे इसके लिए तस्त से दो या तीन वार उठना पडता है परन्तु वह किसी की सहायता स्वीकार नही करते। उनकी वीम मिनट की अनुपस्थिति के दौरान समा-भवन में फिर सफाई की जाती है और तख्त पर चादरो को ठीक ढग से रख दिया जाता है। सभा-भवन मे श्रीभगवान के लौटने के दस या पन्द्रह मिनट बाद वेदमन्त्री का पाठ शुरू हो जाता है। उसके बाद उपदेश सारम्-श्रीभगवान् की 'तीस
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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