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________________ रमण महर्षि बता दी। इसी प्रकार की घटना मदुरा मे भी मेरे साथ घटी थी। जव मैं जाग रहा होता था तब लडके मुझे हाथ लगाने का साहस नही करते ये। परन्तु अगर उन्हे मुझसे बदला लेना होता तो वे उस समय आते जव मैं गाढ-निद्रा मे लीन होता। वे मुझे जहां चाहते ले जाते, जी भर कर पीटते और वापस मुझे मेरे विस्तर पर डाल जाते । मुझे इसके बारे मे तब तक कुछ पता न चलता जब तक वे अगले दिन सारी घटना न बताते ।" श्रीभगवान् इसे कोई महत्त्व नहीं देते थे और कहा करते थे कि यह तो केवल अच्छे स्वास्थ्य का परिणाम है। कभी-कभी वह रात को अध-निद्रा की अवस्था मे लेट जाया करते थे। सम्भवत ये दोनो अवस्थाएं आध्यात्मिक जागरण के पूर्व-सकेत हो गाढ-निद्रा भले ही वह तिमिरावत और निषेधक हो, इस बात की घोतक है कि व्यक्ति मे मन का परित्याग करने और गहरे डूबने की योग्यता है और अध-निद्रा इसकी ओर सकेत करती है कि व्यक्ति साक्षी के रूप मे तटस्थ भाव से अपना निरीक्षण कर सकता है। हमारे पास श्रीभगवान् के वचपन का कोई चित्र नही है । वह हंसते हुए अद्भुत ढग से कहा करते थे कि एक बार बचपन मे परिवार का सामूहिक फोटो खीचा गया था। उनके हाथ मे एक भारी पुस्तक थमा दी गयी थी जिससे वे वडे अघ्ययनशील दिखायी दे। परन्तु एक मक्खी उन पर आ बैठी और जैसे ही फोटो खीचा जाने लगा, उन्होने इसे हटाने के लिए अपनी भुजा ऊपर उठायी। इस फोटो की कोई कापी उपलब्ध नही है और परिणामत उनका कोई फोटो हमे नही मिलता। उपा की प्रथम पूर्व-सूचना अरुणाचल से आने वाला प्रकाश था । स्कूल के विद्यार्थी वेंकटरमण ने कोई धार्मिक सिद्धान्त नही पढा था । वह केवल इतना ही जानता था कि अरुणाचल एक अत्यन्त पवित्र-स्थान है और यह उसके भाग्य का पूर्वाभास था जिसने उसे आन्दोलित कर दिया। एक दिन वह अपने एक वुजुग रिश्तेदार से, जिनसे उसका परिचय तिरुचुजही मे हुआ था, मिला । उन्होने उससे पूछा कि वह कहां से आ रहे हैं। उस वृद्ध ने उत्तर दिया, "अरुणाचल से ।" और एकाएक इम अनुभूति से कि वह पवित्र पहाडी पृथ्वी पर वस्तुत एक दशनीय स्थान है, वेंकटरमण भाव-विह्वल हो कहने लगे, "क्या कहा ? अरुणाचल से ? वह कहाँ है ?" उस वृद्ध को इस अनुभव-शून्य युवक के अज्ञान पर वडा आश्चय हुआ और उसने कहा कि अरुणाचल तिरुवन्नामलाई ही है। श्रीभगवान् ने वाद मे अरुणाचल की स्तुति मे निर्मित आठ प्रलोको मे से प्रथम श्लोक मे इस ओर निर्देश किया है
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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