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________________ तेरहवाँ अध्याय श्रीभगवान् का दैनिक जीवन दिव्य पुरुषो के चमत्कार या रूपान्तरण की उपेक्षा उनको दैनिक जीवनचर्या मे दिव्यत्व के दर्शन करना कही अधिक कठिन है, इसलिए भगवान् और उनके भक्तो की जीवन-पद्धति का वर्णन हमारे लिए अत्यन्त सहायक होगा । यह श्रीभगवान् के जीवन के अन्तिम वर्षों की घटनाओ पर जिनका लेखक ने निकट से निरीक्षण किया है, आधारित है । इसमे वर्णित घटनाएँ अन्य घटनाओ की अपेक्षा अधिक विशिष्ट नही हैं, जिस प्रकार कि इसमे वर्णित भक्त उन भक्तो से श्रेष्ठ नही हैं, जिनका यहाँ वणन नही किया गया । सन् १९४७ का वर्ष है। भगवान् को तिरुवन्नामलाई मे रहते ५० वर्षं हो गये हैं । वृद्धावस्था के आगमन और स्वास्थ्य क्षीण होने के साथ, प्रतिबन्ध लगा दिये गये है और अब श्रीभगवान् से निजी रूप मे तथा हर समय नही मिला जा सकता । रात को वह तस्त पर सोते हैं, जहाँ वह दिन के समय दर्शन देते हैं परन्तु अब दरवाज़े वन्द रखे जाते हैं । प्रारम्भिक वर्षों में, दिन हो चाहे रात, सभी दर्शनार्थी उनके दर्शन कर सकते थे । पाँच बजे द्वार खुल जाते हैं और प्रात काल दर्शनो के लिए आने वाले भक्त, शान्त भाव से अन्दर प्रवेश करते हैं, श्रीभगवान् के सम्मुख दण्डवत् प्रणाम करते हैं और काले पत्थर के फश पर, जो नित्यप्रति के उपयोग से चिकना और चमकदार हो गया है, बैठ जाते हैं । बहुत-से भक्तजन अपने साथ लाये हुए आसन पर बैठ जाते हैं । श्रीभगवान ने, जो इतने विनम्र थे, जो तुच्छातितुच्छ व्यक्ति के साथ भी समता के व्यवहार पर वल देते थे, अपने सम्मुख दण्डवत् प्रणाम की कैसे आज्ञा दे दी ? यद्यपि मानवीय दृष्टि से वह सब प्रकार के विशेषाधिकारो के विरोधी ये तथापि वह यह स्वीकार करते थे कि साधना और आध्यात्मिक प्रगति के लिए पार्थिव देहधारी गुरु की पूजा अत्यन्त सहायक है । केवल समर्पण की वाह्य क्रिया ही पर्याप्त नही । एक बार उन्होंने स्पष्टत कहा था, "मनुष्य मेरे आगे दण्डवत् प्रणाम करते हैं, परन्तु मैं जानता है कि हार्दिक समर्पण वृत्ति किसमे है ।" आश्रमवासी ब्राह्मणो का एक छोटा-सा दल तख्त के समीप बैठता है और
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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