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________________ पशु १०६ सम्बन्ध मे लिम्बा है, "चिन्ना कहप्पन का रग बिलकुल काला था, इमलिए उमे इम नाम से पुकारते ये । यह एक आदश कुत्ता था। जब हम विरूपाक्ष पन्दग मे थे, कुछ दूरी पर कोई काली काली चीज़ जाती हुई नज़र आती पी। कई बार हमे शारियो के ऊपर उसका सिर दिखायी देता था। उसे प्रवल वेगग्य था । वह किसी के साथ मेल-जोल नही करता था और तथ्य तो यह है कि वह उममे कतगता था। हम उसकी स्वतन्त्रता और वैराग्य का सम्मान करते थे। उसके स्थान के निकट भोज्य पदाथ रख कर दूर चले जाते । एक दिन जव हम ऊपर जा रहे थे, करुम्पन एकाएक कूद कर मेरे पास धमाचौकही मचाने लगा और खुशी मे पूंछ हिलाने लगा। मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि कैसे उसने समूह मे से मुझे पहचान लिया और मेरे प्रति प्रेम प्रदर्शित करने लगा। इसके बाद वह हमारे माथ आश्रम में रहा। करुप्पन अत्यन्त समझदार, मेवापरायण और उदार था। उसने अपनी पूर्व उदामीनता का सर्वथा परित्याग कर दिया और हमाग प्रेम-भाजन वन गया। यह मवंभूत मंत्री का एक अनुपम उदाहरण था। वह प्रत्येक आगतुक और आवासी के माथ मित्रता करता, उसकी गोद मे चढ़ जाता और उसके माथ लाड करता । उमका सामान्यत अच्छा स्वागत होता। कुछ व्यक्तियो ने उसे दूर रखने का प्रयत्न किया परन्तु वह कहां हार मानने वाला था। पर अगर उसे दूर रहने का आदेश दिया जाता तो वह सन्यामी की तरह आदेश का पालन करता । एक वार वह एक कट्टर ब्राह्मण के पास पहुंच गया जो हमारी कन्दरा के पास बेल वृक्ष के नीचे मन्त्र जाप कर रहा था। ब्राह्मण कुत्तो को अपवित्र समझता था और उन्हें अपने निवट नहीं फटकने देता था। परन्तु कपन तो समता का प्राकृतिक नियम मममता था और इसका पालन करता था, इसलिए वह याह्मण के निकट जाने मे नही चूदा। ब्राह्मण के भावो के प्रति आदर-भावना के कारण आश्रम के एक आवासी ने उपडा उठा लिया और करप्पन को मारना गुरू कर दिया। रुप्पन कदन करने लगा और दूर चला गया। फिर कभी वह आश्रम में वापस नहीं आया और न उसे वहाँ देखा गया । वह इतना मवेदनशील था कि उस स्थान पर, जहाँ उसके साथ दुष्यवहार किया गया हो फिर कभी नहीं जाता था। "जिम व्यक्ति ने यह गलती की उमने कुत्ते के सिद्धान्तो और मवेदनशीलता फो कम करने का । परन्तु पहले ही चेतावनी मिल गयी थी। घटना इस प्रकार है। एक बार पलानीस्वामी ने चिन्ना करप्पन को मिहका और उसके साथ वटा अभद्र व्यवहार किया। उस रात पानी बरस रहा था और जोर पी ठण्ड पड रही थी। चिन्ना फरुप्पन ने भवन छोड़ दिया और सारी रात दोपलों की एक बोरी पर बिता दी। सवेरा होने पर ही उसे वापस आश्रम
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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