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________________ रमण महर्षि वह सामान्य तमिल शैली मे पशुओ को नपुमक लिंग मे सम्बोधित न कर, पुल्लिग या स्त्रीलिंग मे सम्बोधित किया करते थे । "क्या बच्चो को खाना दे दिया गया है"-जव वह यह कहते तो उनका अभिप्राय आश्रम के कुत्तो से होता। "लक्ष्मी को तुरन्त उसके चावल दे दे" और यहां उनका अभिप्राय गौ लक्ष्मी से था। आश्रम का यह नियम या कि भोजन के समय सबसे पहले कुत्तो को खाना खिलाया जाता, फिर उसके बाद अगर कोई भिखारी आश्रम मे आते तो उन्हे खाना दिया जाता और अन्त मे भक्तो को। मैं यह जानता था कि श्रीभगवान् वह वस्तु स्वीकार नहीं करते जो सव मे समान रूप से वितरित न की जाय । एक दिन उन्हे मध्याह्न के समय आम खाते हुए देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। मुझे इसका कारण भी पता चल गया। आम की ऋतु निकट आ रही थी। वह यह जानना चाहते थे कि यह उस सफेद मोर के लिए, जिसे बडौदा की महारानी ने उन्हे उपहार मे दिया था और जो उनके सरक्षण मे था, पूरी तरह से पका है या नही । आश्रम मे और मोर भी थे। वह उनकी ध्वनि का अनुकरण कर उन्हे अपने पास बुलाते और उन्हे मटर के दाने, चावल तथा आम खाने के लिए देते । मृत्यु से एक दिन पूर्व, जव डॉक्टरो ने यह घोपणा कर दी कि उनकी पीडा भयकर रूप धारण कर लेगी उन्होंने एक मोर को निकट के वृक्ष पर शोर मचाते हुए सुना और यह पूछा कि क्या मोरो को उनका भोजन दे दिया गया है। गिलहरियां खिडकी से कूद कर उनके विस्तर पर आ जाती और वह उनके लिए मटर के दानो से भरा हुआ एक डिव्वा हमेशा अपने पास रखते थे। कभी-कभी वे गिलहरी के आगे डिव्वा रख देते और वह स्वय इसमे से दाने निकाल-निकाल कर खाती रहती और कभी-कभी वह अपने हाथ मे मटर का दाना ले लेते और गिलहरी उनके हाथ से ले-लेकर खाती। एक दिन जब वह वृद्धावस्था और गठिए के कारण डण्डे का सहारा लेकर, पहाडी से आश्रम की ओर जा रहे थे, उन्होने एक कुत्ते को एक गिलहरी का पीछा करते हुए देखा। उन्होंने कुत्ते को नाम लेकर पुकारा और अपना डण्ठा कुत्ते और गिलहरी के बीच में फेक दिया । इस प्रकार वह फिसल पडे और उनकी गर्दन की हड्डी टूट गयी। परन्तु कुत्ता परे हट गया और गिलहरी की जान बच गयी। पशु भी श्रीभगवान् की अनुकम्पा को अनुभव करते थे । अगर लोग किसी जगली पशु की देखभाल करते हैं, तो जब यह वापस अपने साथियो के पास लौटता है तो वह उसका वहिष्कार कर देते है । परन्तु अगर वह श्रीभगवान् के पास से आता था तो वह उसका वहिप्कार नहीं करते थे, बल्कि उसका सम्मान करते थे। वह यह जानते थे कि श्रीभगवान् मे भय और क्रोध का
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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