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________________ कुछ प्रारम्भिक भक्त १०१ तरीको मे भिन्न न हो या उमको शिक्षाए पुरातन विचार-धारा के अनुरुप न हो। तिरुवन्नामलाई के सरकारी अधिकारी श्री राघवाचारियर कभी-कभी श्रीभगवान के दर्शन करने जाया करते थे। वह थियोसाफिकल सोसाइटी के मम्बन्ध मे श्रीभगवान् की सम्मति जानना चाहते थे । परन्तु जब कभी वह वहाँ जाते उन्हें वहां भक्तो की भीड़ दिखायी देती। उन्हें सबके सामने श्रीभगवान से प्रश्न करने में मकोच होता। एक दिन वह तीन प्रश्न पूछन का दृढ़ निश्चय कर उनके सामने गये। उन्होने घटना का इस प्रकार वणन किया है "प्रश्न इस प्रकार थे "१ क्या आप मुझे व्यक्तिगत वार्तालाप के लिए एकान्त मे कुछ मिनट दे सकते हैं ? "२ में थियोसाफिकल सोसाइटी का सदस्य हूँ। इस सोसाइटी के सम्बन्ध में मैं आपकी सम्मति जानना चाहता हूँ। ___ "३ अगर आप मुझे अपने वास्तविक स्वरूप दर्शन का पात्र समझे तो क्या उसे प्रकट करने का अनुग्रह करेंगे ? "जब मैं महर्षि के पास गया, मैंने उन्हे दण्डवत् प्रणाम किया और उनके सम्मुख वैठ गया। उस समय ३० व्यक्तियो से कम नहीं थे, परन्तु शीघ्र ही सब लोग चले गये। इस प्रकार केवल मैं ही वहाँ अकेला रह गया और मेरे विना वताये मेरे प्रथम प्रश्न का उत्तर मिल गया। इससे मैं आश्चय मे पर गया। ____ "तब उन्होंने मुझसे स्वय पूछा कि क्या मेरे हाथ मे गीता है और क्या मैं थियोसाफिकल सोसाइटी का सदस्य हैं और मेरे प्रश्नो का उत्तर देने से पहले उन्होंने कहा, 'यह सोसाइटी अच्छा काय कर रही है। मैंने उनके प्रश्नो का उत्तर हो मे दिया। ___ "मेरे दूसरे प्रश्न का पूर्वाभास होने के वाद, मैने वठी उत्सुकता से तीसरे प्रश्न की प्रतीक्षा की। आधा घण्टे बाद मैने अपना मुंह खोला और कहा, 'जिस प्रकार अजुन श्रीकृष्ण का रूप देखना चाहता था और उसने उनके दशन के लिए प्राथना की थी, मैं आपके वास्तविक रूप का दशन करना चाहता हूँ, क्या में इसका पात्र है।' वह उस समय चबूतरे पर बैठे हुए थे। उनके सामने की दीवार पर दक्षिणामूर्ति का चित्र अकित था। हमेशा की तरह, वह मौन भाव मे देख रहे थे और मैं उनकी आँखो की ओर देख रहा था। उनका शरीर और दक्षिणामूर्ति का चित्र मेरी आँखो से ओझल हो गये। वहां घेवल खाली स्थान था, मेरी आंम्वा के सम्मुख दीवार भी नही थी। फिर मेरी जाया क
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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