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________________ आगम और आगमेतर स्रोत ३ जो मुनि वार-बार देह का व्युत्सर्ग और त्याग करता है, वह भिक्षु है। • अभिक्खण काउसग्गकारी। दसवेआलियं चूलिया २१७ साधु बार-बार कायोत्सर्ग करनेवाला हो। काउस्सग्ग तओ कुजा, सव्वदुक्खविमोक्खण। उत्तरल्झयणाणि २६।३८ कायोत्सर्ग सर्व दु खो से मुक्त करनेवाला है। अन्तर्यात्रा • पणया वीरा महावीहि। आयारो ११३७, देख्ने भाष्य वीर पुरुष महापथ के प्रति प्रणत होते है। महापथ का अर्थ कुण्डलिनी-प्राणधारा भी है। पणए वीरे महाविहि सिद्धिपह णेयाउय धुव। सूयगडो १।२।२१ धीर पुरुष लक्ष्य तक ले जाने वाले उस शाश्वत महापथ के प्रति प्रणत होते है, जो सिद्धि का पथ है। श्वासप्रेक्षा (सहिए) • अणिहे सहिए सुसवुडे आतहित दुक्खेण लब्भते । सूयगडो ११२१५२ देखे टिप्पण मुनि स्नेहरहित और आत्महित मे रत होकर विहार करे। आत्महित की साधना बहुत दुर्लभ है। सहित-कुम्भक करनेवाला आत्मस्थ हो जाता है। घेरण्ड सहिता मे सहित का अर्थ श्वास निरोध या श्वास को शान्त करना है। शरीर प्रेक्षा • जे इमस्स विग्गहस्स अय खणे त्ति मन्नेसी। __ आयारो ५१२१ इस शरीर का यह वर्तमान क्षण है, इस प्रकार अन्वेषण करनेवाला (देखने वाला) अप्रमत्त होता है।
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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