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________________ ३०. प्रेक्षाध्यान अनित्य अनुप्रेक्षा • से पुब पेय पच्छा पेय भेउर-धम्म, विद्धसण-धम्म, अधुव, अणितिय, असासय, चयावचइय, विपरिणाम-धम्मं पासह एय रूव। आयारो ५।२६ तुम इस शरीर को देखो, यह पहले या पीछे एक दिन अवश्य छूट जायेगा। विनाश और विध्वस इसका स्वभाव है। यह अध्रुव, अनित्य और अशाश्वत है। इसका उपचय और अपचय होता है। इसकी विविध अवस्थाए होती है। णत्यि कालस्स णागमो। आयारो २२ मृत्यु के लिए कोई भी क्षण अनवसर नहीं है। वह किसी भी क्षण आ सकता है। वयो अच्चेइ जोव्वणं व। आयारो २।१२ अवस्था बीत रही है और यौवन चला जा रहा है। • अचेइ कालो तूरति राइओ, न यावि भोगा पुरिसाण णिच्चा। उविच्च भोगा पुरिस चयति , दुम जहा खीणफल व पक्खी।। उत्तरज्झयणाणि १३१३१ जीवन बीत रहा है। रात्रियां दौडी जा रही है। मनुष्यो के भोग भी नित्य नहीं है। वे मनुष्य को प्राप्त कर उसे छोड़ देते है, जैसे क्षीण फलवाले वृक्ष के पक्षी। अशरण अनुप्रेक्षा • नाल ते तव ताणाए वा, सरणाए वा । . तुम पि तेसि नाल ताणाए वा सरणाए वा।। आयारो २१८ वे स्वजन तुम्हे त्राण या शरण देने में समर्थ नहीं है। तुम भी उन्हे त्राण या शरण देने में समर्थ नही हो।
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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