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________________ आगम और आगमेतर स्रोत १७ इसलिए प्रत्येक कण मे सवेदन होता है। उस सवेदन से मनुष्य अपने स्वरूप को देखता है, अपने अस्तित्व, स्वभाव को जानता है। शरीर मे होनेवाले सवेदन को देखना, चैतन्य को देखना है, उसके माध्यम से आत्मा को देखना है। प्रक्रिया शरीर को देखना • पासह एय रूव। आयारो ५१२६ तुम इस शरीर को देखो। प्रकम्पन दर्शन • लोय च पास विष्फदमाण। आयारो ४।३७ तू देख। यह लोक (शरीर) क्रोध से चारो ओर प्रकम्पित हो रहा है। शरीर के भीतर से भीतर देखना • अतो अतो पूतिदेहतराणि, पासति पुढोवि सवताइ। आपारो २११३० पुरुप इस अशुचि शरीर के भीतर से भीतर पहुचकर शरीर-धातुओं को देखता है और झरते हुए विविध स्रोतो को भी देखता है। शरीर के स्रोतो को देखना • उड्ढ सोता अहे सोता, तिरिय सोता वियाहिया, एते सोया वियक्खाया, जेहि सगति पासहा। आयारो ५१११५ ऊपर स्रोत है, नीचे स्रोत है, मध्य मे स्रोत है। ये स्रोत कहे गये है। इनके द्वारा मनुष्य आसक्त होता है, यह तुम देखो।
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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