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________________ १२ प्रेक्षाध्यान विशोधन, हल्कापन एवं प्रशस्त ध्यान • काउस्सग्गेण भते । जीवे कि जणयइ ? उत्तरज्झयणाणि २६।१३ काउसग्गेण तीयपडुपन्न पायच्छित्त विसोहेई। विसुद्धपायच्छिते य जीवे निव्वुयहियए ओहरियभारो व्व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहसुहेणविहरइ। भते । कायोत्सर्ग से जीव क्या प्राप्त करता है ? कायोत्सर्ग से वह अतीत और वर्तमान के प्रायश्चित्तोचित कार्यों का विशोधन करता है। ऐसा करनेवाला व्यक्ति भार को नीचे रख देने वाले भार-वाहक की भाति स्वस्थ हृदयवाला हल्का हो जाता है और प्रशस्त-ध्यान मे लीन होकर सुखपूर्वक विहार करता है। विशोधन, तितिक्षा, अनुप्रेक्षा, एकाग्रचित्तता • देहमइजड्डसुद्धी, सुहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा । झायइ य सुह झाण, एगग्गो काउस्सग्गम्मि।। आव० नियुक्ति १४७६ कायोत्सर्ग करने से ये लाभ प्राप्त होते है१. देह की जडता का विशोधन । २ मति की जडता का विशोधन । ३. सुख-दुख की तितिक्षा। ४ अनुप्रेक्षा। ५. एकाग्रचित्तता।
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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