SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८ प्रेक्षाध्यान कायोत्सर्ग मोक्ष मार्ग के रूप मे उपदिष्ट है-ऐसा जानकर धृतिमान मुनि देवसिक आदि अतिचारो (स्व-दोष) को जानने के लिए कायोत्सर्ग करते है। कर्म-क्षय हेतु • काउस्सग्गो उग्गो कम्मक्खयट्ठाय कायव्वो। . आव० नियुक्ति १५६८ अपने कर्मों को क्षीण करने के लिए कायोत्सर्ग करना चाहिए। कषाय-विजय हेतु • तस्स कसाया चत्तारि, नायगा कम्मसत्तुसेन्नस्स। काउस्सग्गमभगं, करेंति तो तज्जयट्ठाए।। आव० नियुक्ति १४७१ उस कर्मरूपी शत्रुसेना के चार नायक है-क्रोध, मान, माया, और लोभ । ये कायोत्सर्ग मे बाधा उपस्थित करते है, अत उनको जीतने के लिए कायोत्सर्ग करना चाहिए। मंगल के लिए • पावुग्धाइ कीरइ उस्सग्गो मगलति उद्देसो। आव० नियुक्ति १५५१ कायोत्सर्ग मगल है। अनिष्ट निवारण हेतु इसे किया जाता है। स्वरूप सर्व दुःख विमोचक • कायोस्सग्ग तओ कुजा, सव्व दुक्ख विमोक्खण। उत्तरल्झयणाणि २६।३८ सर्व दुखो से मुक्त करानेवाला, कायोत्सर्ग करे। काय के पर्यायवाची • काए सरीर देहे, बुदी चय उवचए य सघाए। उस्सय समुस्सए वा, कलेवरे भत्थतनुपाणू।। आव० नियुक्ति १४६०
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy