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________________ मैं सोचता हं ऐसा नहीं हो सकेगा,, वे घर में नहीं हैं, आवारागर्द ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया। तुमने यह कैसे जाना? स्त्री ने पूछा। क्योंकि, आवारा व्यक्ति बोला, जब कोई आदमी तुम जैसी औरत से शादी करता है तो वह केवल खाना खाने के समय ही घर में होता है। यह प्रश्न आलोक ने पूछा है। आलोक, किसी वास्तविक प्रचंड स्त्री को खोज लो। प्रश्न : अब मुझको ऐसा लगता है कि जब तक कोई तैयार न हो, कुछ भी संभव नहीं है। मैं कई वर्षों से कुंजी खोज रहा था, मैंने कई बार आपसे भी पूछा, किंतु आप खामोश रहे। ओशो, एक दिन अचानक आपने मेरे हाथ में कुंजी रख दी। अब कुंजी मेरे पास है। लेकिन मैं स्वयं को ताला खोलने में असमर्थ हूं। मेरे भीतर अवरोध है। कुंजी मेरे पास है। मेरे सामने ताला भी है। फिर भी तब यह क्या हो रहा है? आप उपस्थितं है, मेरी असहाय अवस्था को देखिए। एक समय में सोचा करता था कि मेरे पास कुंजी नहीं है। और अशांत था, अब मेरे पास मेरी कुंजी है और मैं अधिक अशांत हूं। कृपया मेरी सहयता करें। ओशो, मैं जानता हूं कि आप सदा सहायता करते है, अवरोध है मेरे भीतर। कृपया मुझे बताएं उन्हें किस भांति हटाया जाए जिससे कि.......जिससे कि...... पहली बात, जो कुंजी मैंने तुम्हें दी थी, नकली कुंजी है। क्योंकि असली कुंजी दी ही नहीं जा सकती। तुम्हें इसे अर्जित, इसे उपलब्ध करना पड़ेगा। क्योंकि तुम इस कदर मेरे पीछे पड़ गए थे, तो मैंने कहा, ठीक है, यह रखो, अब अपना सिर दीवाल से मत टकराते रहो। उस कुंजी को फेंक दो। तुम्हारे साथ कुछ भी गलत नहीं है, वह कुंजी नकली है। सारी कुंजियां नकली हैं। क्योंकि ताला तुम्हारा है। किसी और के पास से तुम्हें उसकी कुंजी कैसे मिल सकती है? तुम्हीं तो ताला हो! तुम्हें कंजी अपने भीतर निर्मित करनी है, जिस प्रकार तमने ताला बना लिया है। और एक बार तुमने कुंजी बना ली, ताला विलुप्त हो जाता है; ऐसा नहीं है कि कुंजी को ही इसे खोलना पड़ता है। एक बार तुम जान लो, समस्या तिरोहित हो जाती है। ऐसा नहीं है कि समस्या का समाधान करने के लिए तुम्हें अपना ज्ञान प्रयोग करना पड़ता है। एक बार समझ आ जाए समस्या मिट जाती है। कुंजी और ताले का मिलन कभी नहीं होता। ताला वहां है ही इसलिए क्योंकि कुंजी नहीं है। जब कुंजी वहां होती है तो ताला बस खो जाता है, यह बचता ही नहीं।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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