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________________ 'अधिक समय तो मैं कामुक अनुभव करता हूं और मेरी आंखें दूसरे की खोज करती रहती हैं। और मन में भी बहुत अधिक बना रहता हूं।' यही होगा तुम्हारे साथ। क्योंकि यदि तुम कामवासना से लडोगे तो और कहां जाओगे। तब सारी कामवासना एक मानसिक वस्तु बन जाएगी। फिर यह सिर में चली जाएगी। फिर तुम इसके बारे में सोचोगे, कल्पना करोगे, इसके स्वप्न देखोगे। और वे सपने संतुष्ट नहीं कर सकते क्योंकि खाने के बारे में कोई स्वप्न संतुष्ट नहीं कर सकता। तुम खाने के बारे में कल्पनाएं और राजाओं के महलों से प्राप्त निमंत्रण के बारे में कल्पनाएं करते रह सकते हो, लेकिन इससे कोई मदद न मिलेगी। जब तुम स्वप्न से बाहर आओगे तो पुन: तुम्हें भूख अनुभव होगी, कुछ ज्यादा ही भूख। स्वप्न के बाद तुम और अधिक असंतुष्ट अनुभव करोगे-और बार-बार यही होगा, क्योंकि तुम एक वास्तविकता, जीवन के एक सत्य, एक तथ्य, जिसे स्वीकार किया जाना है, प्रयोग किया जाना है, सृजनात्मक रुप से रूपांतरित किया जाना है, से बच रहे हो। मुझे पता है, यह संभव है कि एक दिन तुम्हारी ऊर्जा सहस्रार में चली जाएगी, लेकिन इसको एक परिपक्व ऊर्जा के रूप में गति करने दो। एक दिन तुम्हारे जीवन से कामवासना बस खो जाएगी, फिर तुम इसके बारे में नहीं सोचोगे। तब तुम्हारे लिए यह और अधिक कल्पनाचित्र नहीं रहेगी। यह बस तिरोहित हो जाएगी। जब तुमने उसी ऊर्जा के उच्चतर चरमोत्कर्ष को उपलब्ध कर लिया है तो निम्नतर चरम सुख का कोई आकर्षण नहीं रहता। लेकिन तब तक यह मनोविलास की वस्तु बनी रहेगी। और अगर कामवासना जननेंद्रियों में है तो यह शुभ है, क्योंकि यही वह उचित स्थान है जहां इसे होना चाहिए। यदि यह सिर में है, तो तुम उपद्रव में हो। गुरजिएफ अपने शिष्यों से कहा करता था कि यदि प्रत्येक चक्र उसी स्थान पर सक्रिय हो जहां इसे सक्रिय होना चाहिए तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है। जब चक्र परस्पर अतिक्रमण करते हैं और उनका स्वाभाविक पथ खो जाता है और ऊर्जा ऊल-जलूल ढंग से गति करती है... अगर तुम लोगों के सिर में झरोखे बना सको तो तुम्हें वहां उनके जननांग दिखाई पड़ेंगे, क्योंकि कामवासना वहां पहुंच गई है, और निःसंदेह यदि तुम उपद्रव में हो, तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है। ऐसा होना ही है। अपनी ऊर्जा को उसके स्वाभाविक केंद्र पर ले आओ, प्रत्येक ऊर्जा को इसके स्थान पर ले आओ। तभी यह ढंग से कार्य करती है। तब तुम अंग उपांग की समग्र क्रियाशीलता के गुंजार की ध्वनि को भी सुन सकते हो। यह एक सुव्यवस्था से क्रियारत कार की भांति है। हूं......? तुम इसे चलाते हो और तुम अपने चारों ओर इसकी गज की आवाज अनुभव कर सकते हो। लेकिन जब चीजें गड़बड़ हो जाती हैं, तब निःसंदेह तुम अस्तव्यस्त उलटे-पुलटे हो जाते हो। कुछ भी वहां नहीं होता, जहां इसे होना चाहिए। हरेक चीज अपने स्वाभाविक केंद्र से खो चुकी होती है और
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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