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________________ एक के साथ चूकते जाओगे; तुम अनेक के साथ चूकते जाओगे। समस्या तुम्हारे भीतर है : तुम्हारी ऊर्जा जननांगों के द्वारा प्रवाहित नहीं हो रही है। और इस ढंग से, सारी ऊर्जा धीरे-धीरे सिर में धकेल दी जाती है। हमारे पास हेड क्लर्क, हेड सुपरिनटेंडेंट, हेड मास्टर जैसे शब्द हैं, सभी हेड्स हैं। 'हैड्स' का प्रयोग श्रमिकों के लिए होता है। हेड्स, प्रधान, श्रेष्ठतर लोग हैं-राज्यों के 'हेड्स।' 'हैड्स' मात्र हाथों से काम करने वाला, महत्वहीन। भारत में ब्राह्मण 'हेड्स' हैं। और बेचारे शूद्र तो हाथ भी नहीं हैं-पांव, पैर हैं। हिंदू शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि परमात्मा ने ब्राह्मणों को सिर के रूप में और शूद्रों को पैर के रूप में रचा है और क्षत्रियों, योदधाओं को, बांहों, हाथों, शक्ति तथा व्यापारियों, वैश्यों को पेट की भांति रचा है। लेकिन ब्राह्मण सिर सारा संसार ब्राह्मण बन गया है। यही समस्या है-प्रत्येक व्यक्ति सिर में जी रहा है, और सारा शरीर संकुचित हो गया है। जरा कभी दर्पण के सामने खड़े होकर देखो कि तुम्हारे सारे शरीर को क्या हो गया है। तुम्हारा चेहरा बहुत जीवंत लगता है, जीवन की लालिमा से आलोकित, लेकिन तुम्हारा सीना? -सिकुड़ा हुआ। तुम्हारा पेट? –लगभग यंत्रवत, यांत्रिक ढंग से कार्य करता चला जाता है। तुम्हारा शरीर....... यदि लोग नग्न खड़े हों, उनके शरीरों को देख कर ही तुम जान सकते हो कि अपने जीवन में वे किस ढंग का कार्य कर रहे हैं। यदि वे श्रमजीवी हैं, उनके हाथ जीवंत, मांसल होंगे। यदि वे सिर का उपयोग करने वाले-बुद्धिजीवी, प्रोफेसर्स, उप-कुलपति और उस प्रकार के बकवासी लोग हैं-तब तुम उनके सिरों को बहुत प्रभापूर्ण, लालिमायुक्त देखोगे। यदि वे पुलिसवाले या डाक बांटने वाले हों, तो उनकी टांगें बेहद मजबूत होंगी। लेकिन तुम किसी के पूरे शरीर, सारे शरीर को एक सा विकसित नहीं देखोगे, क्योंकि कोई भी व्यक्ति एक संपूर्ण जैविक इकाई की भांति नहीं जी रहा है। व्यक्ति को एक समग्र जैविक इकाई की भांति जीना चाहिए। संपूर्ण शरीर पर पुन: ध्यान दिया जाना है। क्योंकि पैरों के द्वारा तुम पृथ्वी के संपर्क में हो, तुम्हारा पृथ्वी से गहन संवाद होता है-यदि तुम अपनी टांगों और उनकी शक्ति से असंबद्ध हो और वे मुर्दा अंग बन कर रह गई हैं, तो अब पृथ्वी से तुम्हारा संबंध विच्छेद हो चुका है। तुम उस वृक्ष जैसे हो जिसकी जड़ें मृत या सड़ी हुई, कमजोर हो चुकी हैं; अब यह वृक्ष अधिक समय जीवित नहीं रह पाएगा और समग्रता से स्वस्थ होकर पूर्णत: जी न सकेगा। तुम्हारे पैरों को पृथ्वी में जड़ें जमाने की जरूरत है, वे ही तुम्हारी जड़ें हैं। कभी एक छोटा सा प्रयोग करो। कहीं भी समुद्र के किनारे नदी के तट पर नग्न हो जाओ, बस धूप में नग्न-और कूदना, धीरे-धीरे दौड़ना, और अपनी ऊर्जा को अपने पैरों से, अपनी टांगों द्वारा पृथ्वी में प्रवाहित होते हुए महसूस करो। धीरे-धीरे दौड़ते रहो और टांगों के माध्यम से अपनी ऊर्जा को पृथ्वी आ अनुभव करो। फिर कुछ मिनट धीरे-धीरे दौड़ने के बाद बस शांत होकर पृथ्वी में जड़ें में जाता हुआ
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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