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________________ है, स्कूल नहीं रहा अचानक तुम अकेले हो। व्यक्ति भय अनुभव करने लगता है, मेरे मार्ग-निर्देशक कहां चले गए? कहां हैं वे लोग जो हमेशा मुझे उचित रास्ते की ओर ले जाते थे? वास्तव में कोई भी तुम्हें सही रास्ते पर नहीं ले जा सकता, क्योंकि सारे पथ-प्रदर्शन गलत होने वाले हैं। कोई नेता सही नेता नहीं हो सकता है, क्योंकि नेतृत्व, जैसा भी है, गलत ही है। जिसको भी तुम नेतृत्व की अनुमति देते हो, तुम्हें कछ हानि ही पहंचाएगा, क्योंकि वह कुछ करना, तुम पर कुछ थोपना, तुम्हें एक ढांचा देना शुरू कर देगा, और तुम्हें तो एक संरचना विहीन जीवन, सारे ढांचों, संदर्भो, अनुबंधों से मुक्त, सारी संरचना और चरित्र से मुक्त, अतीत से मुक्त होकर इसी क्षण में जीवन को जीना है। इसलिए सारे मार्गदर्शक दिशा भ्रम देते हैं। और जब वे खो जाते हैं, और तुमने उनमें इतने लंबे समय से विश्वास किया है कि अचानक तुम्हें खालीपन अनुभव होता है, तुम खालीपन से घिरे होते हो और सारे रास्ते विलुप्त हो जाते हैं। जाना कहां है? व्यक्ति के जीवन में यह बड़ा क्रांतिकारी समय होता है। तुम्हें इससे साहसपूर्वक गुजरना होता है। यदि तुम निर्भय होकर इसमें रुके रहे, तो शीघ्र ही तुम अपनी आवाज को जो लंबे समय से दमित है, सुनना आरंभ कर देते हो। शीघ्र ही तुम इसकी भाषा सीखना आरंभ कर दोगे, क्योंकि तुम इसकी भाषा ही भूल चुके हो। तुम वही भाषा जानते हो जो तुम्हें सिखाई गई है। और यह भाषा, अंदर की भाषा, शाब्दिक नहीं होती। अनुभूतियों की भाषा है यह। और सभी समाज अनुभूतियों के विरोध में हैं; क्योंकि अनुभूति एक जीवंत घटना है, यह विद्रोही है। विचार मृत होता है, यह विद्रोही नहीं होता। अत: प्रत्येक समाज ने तुम्हें सिर में रहने को बाध्य किया है, तुम्हें तुम्हारे सारे शरीर से निकाल कर सिर में धकेल दिया है। तुम केवल सिर में जीते हो। यदि तुम्हारा सिर काट दिया जाए और तभी अचानक तुम अपने बिना सिर के शरीर को देखो, तो तुम इसको पहचान नहीं सकोगे। केवल चेहरे ही पहचाने जाते हैं। तुम्हारा सारा शरीर सिकुड़ चुका है, नरमी, कांति, तरलता खो चुका है। यह एक लकड़ी के लट्ठे की भांति लगभग मृत वस्तु है। तुम इसका उपयोग करते हो, कार्यात्मक रूप में यह चलता रहता है लेकिन इसमें कोई जीवन नहीं है। तुम्हारा सारा जीवन सिर में समा गया है। वहां अटक गया है, तुम मृत्यु से भयभीत हो क्योंकि तुम्हारे रहने का एक मात्र स्थान, एक मात्र स्थान जिसमें तुम रह सकते हो, तुम्हारे सारे शरीर में होना चाहिए। तुम्हारे सारे जीवन को तुम्हारे सम्पूर्ण शरीर में विस्तारित और प्रवाहित होना चाहिए। इसे एक नदी, एक धारा बनना पड़ेगा। एक छोटा बच्चा अपने जननांगों से खेलना आरम्भ करता है। तुरंत ही उसके माता-पिता चिंतित हो जाते हैं- 'इसे बंद करो।' यह चिंता उनके स्वयं के दमनों से आती है क्योंकि वे भी रोके गए थे। अचानक वे उदविग्न हो उठते हैं एक दुश्चिंता उनमें उठती है, क्योंकि उन्हें कुछ बातें सिखाई गई थीं
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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