SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुम्हारा मन हरे के बारे में कुछ भी नहीं जानता है। बर्नार्ड शॉ ने यह बात जाने बिना कि वह वर्णांध है अपना सारा जीवन जी लिया। इसको जान पाना बहुत मुशकिल है, लेकिन संयोगवश घटी एक घटना ने इसके बारे में सचेत कर दिया। एक बार उसके एक जन्म-दिवस पर किसी ने उसे एक सूट भेंट में दिया लेकिन उसके साथ टाई नहीं थी। तो वह एक ऐसी टाई खोजने बाजार में गया जो उस सुट के साथ मेल खा सके। सुट का रंग हरा था लेकिन वह पीली टाई खरीदने लगा। उसकी सचिव यह देख रही थी, वह बोली, आप क्या कर रहे हैं? यह मेल नहीं खाती। सूट हरा है और टाई पीली है। वह बोला क्या इन दोनों के बीच कोई अंतर है? वह सत्तर साल जी चुका था बिना यह जाने कि वह पीला रंग नहीं देख सकता। उसे हरा दिखता था। अब पीला उसके मन का भाग नहीं था। उसकी आंखों ने मन में ऐसी सूचना कभी नहीं पहुंचाई थीं। आंखें सेवकों जैसी, सूचना संग्राहकों, पी. आर. ओ. की भांति हैं-सारे संसार में करती हुईं, सूचनाएं बनाए एकत्रित करती हुई उन्हें मन में उड़ेलती रहती हैं, वे मन को पोषित करती रहती हैं। मन ही केंद्रीय कुंड है। पहले तुम्हें इस बात के प्रति सचेत होना पड़ेगा कि तुम आख नहीं हो, न ही वह ऊर्जा हो जो आख के पीछे छिपी है, तभी तुम यह देख पाने में समर्थ हो सकोगे कि प्रत्येक ज्ञानेंद्रिय मन में उडेली जा रही हैं, तुम मन भी नहीं हो, तुम वह हो जो उसे उड़ेला जाता देख रहा है, तुम तो सिर्फ किनारे पर खड़े हो, सारी नदियां समुद्र में उडेली जा रही है, तुम द्रष्टा हो, साक्षी हो। स्वामी राम ने कहा है : वितान को परिभाषित करना दुष्कर है, लेकिन संभवत: इसका सर्वाधिक आवश्यक तत्व है उसके अध्ययन में लगना, जो प्रेक्षक से बाहर है। ध्यान की विधियां ऐसा रास्ता दिखाती हैं जो व्यक्ति को उसकी अपनी आंतरिक अवस्थाओं के परे ले जाता है। ध्यान की विधियां ऐसा रास्ता दिखाती हैं जिससे व्यक्ति अपनी आंतरिक अवस्थाओं का अतिक्रमण कर लेता है। और ध्यान का चरम बिंदु यह जान लेना है कि जो कुछ भी तुम जान लेते हो वह तुम नहीं हो। जो कुछ भी जानी गई वस्तु के रूप में आ गया है वह तुम नहीं हो; क्योंकि तुम्हें एक वस्तु नहीं बनाया जा सकता। तुम सदा से ही आत्मनिष्ठ, ज्ञाता, ज्ञानी, जानने वाले रहे हो। और ताता को भी शात नहीं बनाया जा सकता है। यही है पुरुष, जागरूकता। यही है आत्यंतिक समझ जो योग से उदित होती है। इस पर ध्यान करो। आज इतना ही।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy