SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बिलकुल आरंभ जब तुम किसी स्त्री या पुरुष को प्रेम करते हो और तुम उसका हाथ अपने हाथ में लेते हो, यदि तुम्हारा हाथ प्रवाहित नहीं हो रहा है, तो ऐसा प्रेम किसी काम का नहीं है। अगर तुम्हारा हाथ ऊर्जा से स्पंदित और प्रकंपित नहीं हो रहा है और तुम्हारी स्त्री या तुम्हारे पुरुष में ऊर्जा नहीं उड़ेल रहा है, तो बिलकुल आरंभ से ही यह प्रेम करीब-करीब मृत है। तब यह शिशु जिंदा नहीं जन्मा है। तब जल्दी या देर में तम समाप्त हो जाओगे-तम समाप्त हो ही चके हो। इसे पहचानने में थोड़ा समय खर्च होगा, क्योंकि तुम्हारा मन भी कुंठित है, अन्यथा तुमने इसमें प्रवेश ही न किया होता, क्योंकि यह पहले से ही मृत है। तुम किसलिए इसमें प्रविष्ट हो रहे हो? तुम्हें चीजों को पहचानने में समय लगता है क्योंकि तुम्हारी संवेदनशीलता, प्रतिभा, बुद्धिमत्ता इतनी ज्यादा धुंधली और संशयग्रस्त है। केवल एक प्रवाहमान प्रेम ही आनंद का, हर्ष का, उल्लास का स्रोत बन सकता है। लेकिन उसके लिए तुम्हें प्रवाहमान ज्ञानेंद्रियों की आवश्यकता पड़ेगी। कभी-कभी तुम्हें इसकी झलक मिल सकती है; और हरेक व्यक्ति को जब वह बच्चा होता है यह मिलती है। तितली के पीछे भागते हुए किसी बच्चे को देखो। वह प्रवाहमान है, जैसे किसी भी क्षण वह अपने शरीर से बाहर छलांग लगा सकता है। किसी बच्चे को जब वह गुलाब के फूल को देख रहा हो, देखो, उसकी आंखें, उनकी चमक, वह प्रदीप्ति जो उसकी आंखों में आ जाती है, देखो, वह प्रवाहमान है। उसकी आंखें पुष्प की पंखुड़ियों पर नृत्य सा कर रही होती हैं। यही है होने का ढंग-नदी समान हो जाओ। और केवल तभी इन संवेदकों पर मालकियत संभव है। वस्तुत: लोगों ने बहुत गलत दृष्टिकोण अपनाया हुआ है। वे सोचते है कि अगर तुम्हें अपनी ज्ञानेंद्रियों का मालिक बनना हो तो उन्हें करीब-करीब मृत बना लो। लेकिन तब मालकियत करने में क्या सार है? तुम हत्या कर सकते हो और तुम्ही मालिक हो। तुम लाश पर बैठ सकते हो। लेकिन तब मालिक होने में क्या सार रहा? लेकिन यह आसान लगता है, पहले उन्हें मार डालो और फिर तुम मालकियत कर सकते हो। अगर शरीर इतना शक्तिशाली, और तीव्र महसूस होता हो तो इसे कमजोर बनाओ और तुम यह महसूस करने लगोगे कि तुम मालिक हो। लेकिन तुमने शरीर को मार डाला है। ध्यान रहे, जीवित पर मालकियत की जानी चाहिए, मर्दा चीजों पर नहीं, वे किसी काम की न होंगी। लेकिन यह सुगम उपाय का रूप खोजा गया, इसलिए संसार के सारे धर्म इसका उपयोग कर रहे हैं। धीमे-धीमे अपने शरीर को नष्ट करते जाओ। शरीर से अपना संबंध विच्छेद कर लो। संपर्क में मत रहो, खुद को परे हटा लो। उदासीन हो जाओ। तब तुम्हारा शरीर करीब-करीब एक मुर्दा पेड़ हो जाएगा, अब इस पर नई पत्तियां नहीं उगती हैं, न ही इसमें फूल लगते हैं, न ही अब पक्षी इस पर विश्राम करने आते हैं। यह बस एक मरा हुआ लूंठ होता है। निस्संदेह तुम इस पर मालकियत कर सकते हो, लेकिन अब इस मालकियत से तुम्हें क्या मिलने वाला है? यही समस्या है; इसी कारण लोग समझ नहीं पाते कि पतंजलि क्या कह रहे हैं।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy