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________________ में, जो अपने अन्नमय कोष के सारे आयामों में गतिमान हो चुका हो, न सिर्फ गतिमान वरन वह उसके पार भी जा चुका हो, और जो अन्नमय कोष को एक साक्षी की भांति देख सकता हो, के उचित मार्ग-निर्देशन में किया जाना चाहिए। अन्यथा अनाहार घातक हो सकता है। इसके बाद भोजन की उचित मात्रा और उचित गुणवत्ता का अनुपालन करना होता है। फिर अनाहार की जरूरत नहीं रहती। फिर भी अन्नमय कोष महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह तुम्हारा पहला शरीर है। और अधिकतर लोग अपने पहले शरीर से इतने चिपके होते हैं कि कभी दूसरे की ओर गतिमान नहीं होते। लाखों लोगों को इस बात का बोध ही नहीं है कि उनके पास पहले के पीछे छिपा हुआ एक गहरा शरीर एक दूसरी देह भी है। पहली पर्त बहुत स्थूल है। दूसरे शरीर को पतंजलि 'प्राणमय कोष', ऊर्जा-शरीर, विद्युत-काया कहते हैं। दूसरा विद्युत क्षेत्रों से बना है। इसी शरीर पर एक्युपंक्चर कार्य करता है। दूसरा शरीर पहले से अधिक सूक्ष्म है। और जो लोग पहले से दूसरे की ओर बढ़ने लगते हैं वे अत्यधिक आकर्षक, चुंबकीय, सम्मोहक और ऊर्जा-पुंज बन जाते हैं। यदि तुम उनके पास जाओगे तो स्फूर्ति और जीवंतता महसूस करोगे। यदि तुम ऐसे व्यक्ति के पास जाते हो जो सिर्फ अपने अन्न–शरीर में जी रहा है, तो तुम रिक्तता अनुभव करोगे, वह तुम्हें सोख लेगा। अनेक बार तुम ऐसे लोगों के संपर्क में आते हो और यह महसूस करते हो कि वे तुम्हें सोखते हैं। जब वे हट जाते हैं तो तुम्हें खालीपन का, रिक्तता का अहसास होता है, जैसे कि किसी ने ऊर्जा को शोषित कर लिया हो। पहला शरीर शोषक है, और यह बहुत स्थूल भी है। यदि तुम अन्न-शरीर उन्मुख लोगों के साथ बहुत अधिक रहते हो, तो तुम सदा बोझिलता, तनाव, ऊब, नींद और ऊर्जा विहीनता का अनुभव करोगे, सदा अपनी ऊर्जा के निचले पायदान पर रहोगे और उच्चतर विकास में लगाने के लिए तुम्हारे पास कोई ऊर्जा नहीं बचेगी। इस प्रकार का, पहले प्रकार का, अन्नमय कोष उन्मुख व्यक्ति खाने के लिए जीता है-वह खाता है और खाता है और खाए चला जाता है। और यही उसका संपूर्ण जीवन है। एक अर्थ में वह बचकाना रहता है। संसार में आकर जो सबसे पहला काम करता है वह है हवा खींचना और दूध अना। बच्चे को संसार में आकर पहला कार्य भोजन-काया की सहायता का करना पड़ता है, और यदि कोई भोजन से आसक्त रहता है, तो वह बचकाना बना रहता है। उसके विकास में बाधा आती है। यह दसरा शरीर, प्राणमय कोष, तम्हें नई स्वतंत्रता देता है, तम्हें ज्यादा आकाश देता है। दसरा श पहले से. बड़ा है, यह तुम्हारे भौतिक शरीर तक ही सीमित नहीं है। यह भौतिक शरीर के अंदर है और यही भौतिक शरीर के बाहर है। यह सूक्ष्म वायु की, ऊर्जा-मंडल की भांति तुम्हें घेरे हुए है। अब तो उन्होंने सोवियत रूस में यह खोजा है कि इस ऊर्जा-शरीर के चित्र लिए जा सकते हैं। वे इसे बायो
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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