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________________ ऐसा उपलब्ध कर लेना चाहिए जो शाश्वत है।' उनके भीतर शिखर पर पहुंचने की तीव्र अभिलाषा जाग्रत हो गई। उस शिखर को हम परमात्मा कहते हैं, उस शिखर को हम कैवल्य कहते हैं, उस शिखर' हम मोक्ष, निर्वाण कहते हैं; किंतु वह शिखर तुम्हारे भीतर एक बीज की भांति है। उसको प्रस्फुटित होना पड़ेगा। इसलिए अधिक संवेदनशील आत्मा वाले व्यक्तियों को अधिक दुख होता है। मुढ़ को कोई दुख नहीं होता, मूर्खों को कोई पीड़ा नहीं होती। थोड़ा धन कमा कर एक छोटा सा मकान बना कर वे अपने सामान्य जीवन में पहले से ही प्रसन्न हैं- पर्याप्त हैं उनकी उपलब्धियां । केवल वही उनकी संभावना है। कुल यदि तुम सजग हो तो लक्ष्य यह नहीं हो सकता, यह नियति नहीं हो सकता, तब तुम्हारे अस्तित्व में तीक्ष्ण तलवार की भांति एक तीव्र संताप का प्रवेश हो जाएगा। यह तुम्हारे अस्तित्व को परम गहराई तक भेद डालेगा। तुम्हारे हृदय से एक दारुण आर्तनाद उठेगा और यह एक नये जीवन का जीवन की एक नई शैली का जीवन के एक नये आधार का प्रारंभ होगा। इसलिए जो पहली बात मैं कहना चाहता हूं वह यह है, अप्रसन्न अनुभव करना आनंदपूर्ण है; अप्रसन्न अनुभव करना एक वरदान है ऐसा अनुभव न करना मंदमति होना है। दूसरी बात, मनुष्य पीड़ा में रहते हैं; क्योंकि वे अपने लिए पीड़ा निर्मित किए चले जाते हैं। इसलिए पहली बात इसे समझ लो। अप्रसन्न होना शुभ है, किंतुमैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुमको अपनी अप्रसन्नता को और और निर्मित करते चले जाना चाहिए। मैं कह रहा हूं यह शुभ है, क्योंकि यह तुमको इसके पार जाने के लिए उकसाती है। लेकिन इसके पार चले जाओ, वरना यह शुभ नहीं है। लोग अपनी पीड़ा की रूप-रेखा निर्मित किए चले जाते हैं। इसका एक कारण है, मन परिवर्तन का विरोध करता है। मन बहुत रूढ़िवादी है। यह पुराने रास्ते पर चलते रहना चाहता है, क्योंकि पुराना पथ जाना-पहचाना है। यदि तुम हिंदू जन्मे हो, तुम हिंदू ही मरोगे । यदि तुम ईसाई जन्मे हो, तुम ईसाई ही मरोगे। बदलते नहीं हैं लोग एक विशिष्ट विचारधारा तुम्हारे भीतर इस भांति अंकित है कि तुम इसके परिवर्तित करने से भयभीत हो जाते हो। तुम इसकी पकड़ का अनुभव करते हो, क्योंकि इसके साथ तुम्हारी जान-पहचान है। कौन जाने नया शायद उतना अच्छा न हो जितना पुराना है। और पुराना जाना हुआ है; तुम इससे भलीभांति परिचित हो। हो सकता है कि यह पीड़ापूर्ण हो, लेकिन कम से कम उससे परिचय तो है। प्रत्येक कदम पर जीवन के प्रत्येक क्षण में तुम कुछ न कुछ निर्णय लेते रहते हो, भले ही तुम इसे जान पाओ या नहीं। निर्णय से तुम्हारा हर क्षण आमना-सामना हो रहता है - पुराने रास्ते का, जिस पर तुम अभी तक चलते रहे हो, अनुगमन करना है, या नये का चुनाव करना है। प्रत्येक कदम पर सड़क दो भागों में बंट जाती है और लोग दो प्रकार के होते हैं। वे जो भलीभांति चला हुआ रास्ता चुन लेते हैं, निःसंदेह वे एक वर्तुल में घूमते रहते हैं। वे जाने हु को चुन लेते हैं, और जाना हुआ एक वर्तुल है। वे इसको पहले से ही जान चुके हैं। वे अपना भविष्य ठीक वैसा -
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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