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________________ प्रत्येक बात को. उसके विपरीत द्वारा संतुलित कर दिया जाता है। विज्ञान ने गुरुत्वाकर्षण का नियम खोज लिया : बाग में बैंच पर बैठे न्यूटन ने एक सेब गिरते हुए देखा-यह हुआ हो या नहीं; यह बात नहीं हैं लेकिन यह देख कर कि सेब नीचे गिर रहा था, उसके भीतर एक विचार उठा : वस्तुएं सदा नीचे की ओर ही क्यों गिरा करती हैं? और कुछ क्यों नहीं होता? पका हुआ फल ऊपर की ओर क्यों नहीं उछल जाता और आकाश में क्यों नहीं खो जाता है? इधर-उधर क्यों नहीं चला जाता? सदैव नीचे की ओर ही क्यों? उसने मनन और चिंतन आरंभ कर दिया, और तब उसने एक नियम की खोज की। वह एक बहुत आधारभूत नियम पर पहुंच गया : यह कि पृथ्वी वस्तुओं को अपनी ओर खींच रही है। इसका एक गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र है। चुंबक की भांति यह प्रत्येक वस्तु को नीचे की ओर खींचती है। पतंजलि, बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट-वे भी एक भिन्न आधारभूत नियम, गुरुत्वाकर्षण से उच्चतर नियम के प्रति सजग हो गए। उनको ज्ञात हुआ कि चेतना के भीतरी जीवन में एक ऐसा क्षण आता है जब चेतना ऊपर की ओर उठना आरंभ कर देती है-ठीक गुरुत्वाकर्षण की भांति। यदि सेब वृक्ष पर लटक रहा हो तो यह गिरता नहीं है। इसके नीचे न गिरने में वृक्ष इसकी सहायता करता है। जब फल वृक्ष को छोड़ देता है, तो यह नीचे गिर पड़ता है। बिलकुल यही बात है : यदि तुम अपने शरीर से आसक्त हो रहे हो तब तुम ऊपर की ओर नहीं गिरोगे; यदि तुम अपने मन से आसक्त हो रहे हो तब तुम ऊपर की ओर नहीं गिरोगे। यदि तुम आत्मभाव की भावना से आसक्त हो तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में रहोगे क्योंकि शरीर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव क्षेत्र में है, और मन भी। मन सूक्ष्म शरीर है; शरीर स्थूल मन है। ये दोनों गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में हैं। और क्योंकि तम उनसे आसक्त हो तो तम गरुत्वाकर्षण के प्रभाव में नहीं हो, बल्कि तुम किसी ऐसी वस्तु से आसक्त हो जो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव क्षेत्र में है। यह इस प्रकार से है जैसे कि तुम एक बड़ी चट्टान उठाए हुए हो और नदी में तैरने का प्रयास कर रहे हो, वह चट्टान तुमको नीचे खींच लेगी, यह तुमको तैरने नहीं देगी। यदि तुम चट्टान को छोड़ दो तब तुम सरलता से तैर पाओगे। हम किसी ऐसी चीज से आसक्त हो रहे हैं : शरीर, मन, जो गुरुत्वाकर्षण के नियम के आधीन कार्य कर रहा है। पतंजलि कहते हैं एक बार तुम जान गए कि तुम न देह हो और न ही मन, अचानक तुम ऊपर की ओर उठने लगते हो। आकाश में कहीं ऊंचाई पर स्थित कोई तुमको ऊपर खींच लेता है, इस नियम को 'प्रसाद' कहते हैं। तब परमात्मा तुमको ऊपर की ओर खींच लेता है। और इस प्रकार का नियम होना ही चाहिए, अन्यथा 'गुरुत्वाकर्षण' का अस्तित्व नहीं हो सकता। प्रकृति में यदि धनात्मक विद्युत का अस्तित्व है, तब ऋणात्मक विद्युत का भी अस्तित्व होना चाहिए। पुरुष का अस्तित्व है, तब स्त्री का अस्तित्व भी होना चाहिए। तर्क का अस्तित्व है, तब भाव का भी अस्तित्व होना चाहिए। रात्रि का अस्तित्व है, तब दिन का अस्तित्व भी होना चाहिए। जीवन का अस्तित्व है, तब मृत्यु का भी अस्तित्व होना चाहिए। प्रत्येक वस्तु को इसे संतुलित करने के लिए विपरीत की आवश्यकता होती है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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