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________________ हो जाए तब उनको वापस लौटना पड़ता है। एक बार उन्होंने मजा ले लिया फिर उनको पुन: घिसटने के लिए पृथ्वी पर वापस लौटना पड़ता है। बुध कहते हैं, 'नहीं, मैं देवता नहीं है क्योंकि मुझमें प्रेरणा नहीं है।' 'क्या आप कोई संत, अर्हत हैं?' बुद्ध कहते हैं, 'नहीं, क्योंकि संत में भी मोक्ष उपलब्ध करने की एक विशेष प्रेरणा होती है' -कि मोक्ष किस भांति पाया जाए, संसार से परे कैसे जाया जाए, इच्छा-शून्य किस भांति हुआ जाए। लेकिन फिर भी इच्छा तो है वहां पर। अब इच्छा-शून्य हो जाने की इच्छा है। प्रेरणारहित होने की प्रेरणा हो सकती है : प्रेरणारहित अवस्था किस प्रकार से उपलब्ध हो-यही प्रेरणा बन सकती है। लेकिन यह सभी कुछ वही है : तुम पुन: उसी जाल में फंस गए हो। बुद्ध कहते हैं, 'नहीं, मैं सजग हूं।' सजगता में प्रेरणा नहीं उठती। इसलिए जब भी प्रेरणा उठती है इच्छा उठ खड़ी होती है। करो कुछ मत। सजग हो जाओ और तुम देखोगे कि इच्छा वापस लौट रही है, मिट रही है, यह तिरोहित हो जाती है। जब सजगता का सूर्य उदित होता है इच्छाएं सुबह की ओस की बूंदों की भांति वाष्पित हो जाती हैं। तीसरा प्रश्न : क्योंकि संबुद्ध व्यक्तियों के बच्चे नहीं होते है, और हम विक्षिप्त व्यक्तियों को आपके द्वारा संतान उत्पन्न करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है। अत: बच्चे करने का उचित समय कौन सा बुदध व्यक्तियों के बच्चे नहीं होते; विक्षिप्त व्यक्तियों के बच्चे नहीं होने चाहिए। ठीक उन दोनों के मध्य में मानसिक स्वास्थ्य की, अविक्षिप्तता की एक अवस्था होती है, जिसमें तुम न तो विक्षिप्त हो और न ही संबद्ध, बस स्वस्थ हो। ठीक मध्य में हों-संतान उत्पन्न करने का माता बनने का या पिता बनने का यही उचित समय है। कठिनाई यही है, विक्षिप्त व्यक्तियों में अनेक बच्चे पैदा करने की प्रवृत्ति होती है। वस्तुत: पश्चिम में विक्षिप्तता अधिक है। लोगों के बहुत अधिक बच्चे नहीं होते हैं। विक्षिप्तता के इतना प्रभावी होने के कारणों में से यह एक कारण हो सकता है : बच्चों के साथ वह पुरानी संलग्नता अब न रही। पूर्व में लोग इतने विक्षिप्त नहीं हैं। वे विक्षिप्तता को सहन नहीं कर सकते, बच्चे पर्याप्त संख्या में हैं। एक संयुक्त परिवार में बहुत अधिक बच्चे होते हैं.। तुम्हारे पास पागल हो पाने के लिए समय ही नहीं
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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