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________________ लगते हो। तुम प्रेरणा के आदी हो चुके हो अब तुम बिना प्रेरणा के नहीं जी सकते हो पुनः बड़े बर में भी तुम अप्रसन्न हो पुनः तुम आशा कर रहे हो किसी दिन किसी महल में कहीं और मुझको खुशी मिल जाएगी और इसी प्रकार से व्यक्ति आने सारे जीवन को व्यर्थ किए चला जाता है। प्रेरणा – की क्रिया - व्यवस्था को समझो। यह तुमको भविष्य में एक स्वप्न देती है और स्वप्न एक स्वप्न है - और यह वर्तमान से सारा आनंद ले लेती है। किसी अवास्तविक के लिए यह उसे नष्ट कर देती है जो वास्तविक है। एक बार तुम समझ जाओ, तुम प्रेरणा के माध्यम से जीना बंद कर देते हो। तब तुम बस बिना प्रेरणा के जीते हो। प्रेरणा के बिना जीना क्या है, क्या है बिना प्रेरणा के जीना? यहां और अभी में गहन परितृप्ति में जीना और आने वाले कल की चिंता न करना । जीसस कहते हैं, कान के बारे में मत सोचो खेत में लगी लिली को देखो राजा सोलोमन भी अपनी सारी श्रेष्ठता के साथ इतना सुंदर नहीं था। खेत में लिलियों को देखो; वे कल की चिंता में नहीं हैं। वे बस अभी और यहीं हैं। वे अभी और यहीं परमेश्वर के साथ हैं। उनका कोई भविष्य नहीं है; उनका कोई भूत नहीं है। उनके लिए यही क्षण सभी कुछ है। , वह मन जिसने प्रेरणा को त्याग दिया है, अब मन नहीं है। एक बार तुम प्रेरणा को छोड़ दो म शाश्वत यथार्थ के भाग बन जाते हो जो सदैव अभी सदा यहीं है और तब तुम परितृप्त हो। तुम्हारी इस परितृप्ति से और अधिक परितृप्ति का उदय होता है, परितृप्ति की बड़ी और बड़ी लहरें उठती हैं। तुम्हारी अतृप्ति से और और अतृप्ति उत्पन्न होती है। इसलिए देखो.. .इसी क्षण में तुम प्रेरणा के संसार में जा सकते हो, जिसमें तुम पहले से ही चल रहे हो – प्रतिस्पधा, बाजार, या तुम प्रेरणा के पार के संसार में जा सकते हो। हर कदम पर रास्ता दो भागों में बंट जाता है। यदि तुम प्रेरणा को छोड़ देते हो, तुम इसी क्षण में प्रसन्न होने का निर्णय लेते हो और तुम कहते हो, ' भविष्य को अपनी चिंता स्वयं कर लेने दो । अब मैं यहीं और अभी होऊंगा, और यही पर्याप्त है, और मैं अधिक कुछ नहीं मांगता। मैं उसी का आनंद लूंगा जो मुझे पहले से ही दे दिया गया है। और तुमको पर्याप्त से अधिक पहले से ही दिया गया है।' मैंने कभी ऐसे व्यक्ति को नहीं देखा जिसका जीवन समृद्ध न हो, लेकिन एक धनी व्यक्ति को पा लेना बहुत कठिन है- सभी लोग भिखारी हैं और मैं तुमसे कहता हूं कि किसी को भिखारी होने की आवश्यकता नहीं है। जीवन ने तुमको पहले से ही इतनी समृद्धियां दी हुई हैं कि यदि तुम यह जान जाओ कि उनका आनंद कैसे लिया जाए तो तुम और अधिक की मांग नहीं करोगे। तुम कहोगे कि मैं तो इतनी समृद्धियों का आनंद नहीं ले पा रहा हूं। पहले से ही यह बहुत अधिक है। मैं इसको सम्हाल नहीं सकता। मेरे हाथ बहुत छोटे हैं, मेरा हृदय बहुत छोटा है। मैं इनको नहीं सम्हाल सकता!
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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